________________
३०
प० सत्यनारायण कविरत्न
अपिच
त्रयोदशेन्हि सम्प्रेतो नीयते यम किंकरै । तस्मिन् मार्गे व्रजति यो गृहीत इव मर्कट ॥ श्लोक ४४ अध्याय २ गरुड़
इसका और अधिक विवरण उक्त अध्याय के ३२ वे श्लोक में अत के श्लोक तक दिया है । इस ग्रन्थ से मालूम होता है कि पश्चात् १३ दिन के हमारी मा को कुछ नही मिल सकता । इससे तेरह ही दिन का कार्य होना योग्य है । मेरे मतानुसार मासिक श्राद्ध, वार्षिक श्राद्ध वा अकाल-मृत्यु का विषय इससे जुदा है । महाराज । सेवक की प्रार्थना यह है कि पचको मे यदि तेरही करते है तो यहाँ के पडितो के मत विरुद्ध है, और यदि उनके पश्चात् करते है तो गरुड़ पुराण के मत विरुद्ध है; ओर मा को कुछ नही मिलता -- अथवा उक्त ग्रन्थ झूठा है वा यह श्लोक मिलाये हुए है। हां, पचकों
दाह - कर्म करना मना है सो यह काड उपस्थित नही । कृपा कर जेसी सेवक को आज्ञा हो वह करे, क्योकि यह प्रथा बहुत प्रचलित भी नही है | शेष मिलने पर ।
अभागा सत्यनारायण धूपुर, आगरा
मित्र को पद्य में पत्र
उन दिनो सत्यनारायणजी सनातनधर्म का प्रचार करने के लिये भी कभी-कभी आस-पास के ग्रामो मे जाया करते थे, यह बात निम्नलिखित पत्र से प्रकट होती है, यह पत्र उन्होंने अपने किसी मित्र को भेजा था ।
पत्र
सिद्धि श्री सद्गुण ते भूषित पावन परम पियारे । राम-राम बहु बार हमारी लेहु प्रथम सुखकारे ॥