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अग्रेजी अध्ययन
लैहै ।
विरैहै ।
छहरे है ।
फहरे है ||
पढ़े-लिखे की मातु आजते कौन परीक्षा भीतर ते प्रसन्न है माता ऊपर ते जु रामचरित मानस की माता कौन छटा टेक मेटि औरन की को निज टेक केतु खुशी होय कर माता मो पै को इनाम अब देगी । समझ उठनि अपने लालन की कौन हीय भरि लेगी ॥ हाय मात । निज वत्सहितजिके कितको जाय सिधारी । बिना लखें तुमरे जल बरसे नयनन ते अति भारी ॥ जो मै जानतु ऐसी माता सेवा करत बनाई । हाय ! हाय || कहा करूँ मात तुव टहल नही कर पाई ॥
२६
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• माता के मरने पर सत्यनारायण ने अपने गुरूजी के नाम एक चिट्ठी लिखी थी । उसे हम यहाँ उद्धृत करते है-
श्रीभगवत्यै नमः श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नम
श्री ६ युत पंडितजी महाराज - साष्टांग दंडवत के पश्चात् सेवक का नीचे लिखा सविनय निवेदन है -
त्रयोदशेन्हि सम्प्रेतो नीयते यम किकरे । पिंडज देहमाश्रित्य दिवारात्री क्षुधान्वित ॥
हमारे पापो के उदय से और पुण्यो के क्षीण होने से हमारी प्यारी सुखकारी दीनन हितकारी मा गत मंगलवार ७ को स्वर्गनारी की गोद मे सो गई, यह तो सोच चित्त को डाह करही रहा था कि और दूसरी आपत्ति आकर सेवक पर उपस्थित हुई है के विषय मे झगड़ा कर रहे है । कोई पन्द्रह दिन की कहता है और कोई ठीक तेरह दिन ही की मानते है । और महर्षि -प्रणीत गरुण पुराण में भी यही दिया है यथा-
।
अब यहाँ के पंडितगण उनकी त्रयोदशी
,
श्लोक १३८ अध्याय २