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________________ ५० सत्यनारायण कविरत्न जय मन्द-मन्द आनन्द-रस-पारायण पपिया अमद । जय निरत आत्मरत सतत सत, सतनारायण हिय सुखद । ६।। यह आतम अज अगम अमर अनुपम और अक्षय । तजि यासो सम्बन्ध प्रकृति में प्रकृति होति लय । यो विचारि उर मरम प्रवल प्रगटत इमि निश्चय । रामतीर्थ भारतमय भारत रामतीर्थमय । कहा मिलन-विछुरन जवै तुम हममे हम तुममे बसत । वस बिमल ब्रह्म वैभव विपुल विश्व व्याप्त केवल लसत ॥७॥ जव लौ देश हितैषिन को भारत मे आदर । जबलौ भुवि अखण्ड शङ्कर वेदान्त उजागर । जबलौ सुभग स्वदेश भक्ति निश्शेष बसति मन । जवलौ जगमग जगत जगत जगमगत प्रेमपन । तबलौ निस्सशय रहहि, रामतीर्थ कीरति अमल । नित अङ्कित प्रतिउर पटलपर,अजर अमर अविचल अटल।।८। . माता की मृत्यु जव सत्यनारायण लगभग १७ वर्ष के थे तब उनकी माता का देहान्त हो गया । उस समय उन्हे जो दुख हुआ उसे उन्होंने “माता-विलाप" नामक कविता मे इस भॉति प्रकट किया था तेरे बिना मातु को मेरी काजर आंख लगैहै । हाथ पाँव करि ऊजर माता को मुख मोर धुवैहै ॥ भॉति भॉति के वस्त्र हाथ गहि को मोको पहरैहै ।' बडी फिकर करिके . को माता भोजन मोहिं करहै । दत्तचित्त है मो कहें माता तो बिनु कौन पढेहै । मार-पीट के जननि कौन मोहि बारम्बार खिजैहै ।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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