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________________ अग्रेजी-अध्ययन २७ जय पंजाब-मराल बाल गुन मजु माल धर, जयति स्वप्रन-प्रतिपाल सुमति-गति-रुचि रसाल वर। जय विनोद-बत-विमल सुधाकर कर उज्जल तर, जय स्वजन्म वसुधा सेवा-रत निरत निरन्तर । जय भवभय दारुन दुख हरन भेद हरन तारन तरन । जय पूरन मृदु स्वर सो "प्रणव" उच्चारन धारन करन।।३।। जय कुभाव-कुल-कदन सरलता-सदन सुहावन । चारबदन मन मदन मदनमोहन मन भावन । जय अगाध रस रङ्गी गड्गी' सङ्गी पावन । बज-ब्रजभाषा भक्त भक्ति रस रुचिर रसावन । जय जग कलोल कर लोल अति गोल चन्द प्रियतम परम । धृति धरम प्रभाकर नरम हिय हारन भव भय भरम तम।।४।। जय प्रन-प्रनय दृढावन दृढ तर छोह छुड़ावन । आरज-सुयस बढावन वैदिक ध्वजा उड़ावन । जय विदेश विद्वान चकित चचल चित चोरन । नित अशेष उपदेश प्रचुर पीयूष निचोरन । भुवि विश्रुत विविध प्रमान जुत दै दै श्रुति परिचय प्रबल। जय जयकुमार' जय पान जिय भारत रति राची नवल।।५।। विशद उपनिषद पदम 'अलिफ षटपद गुजारन । सुघर स्वच्छ स्वच्छन्द से सुलभ सुजान अमान मनोविज्ञान उधारन । भारत-दशा सुधारन सब तन मन धन बारन । १. अमेरिका । २. शालिग्राम-स्वरूप कृष्ण का प्यारा नाम । ३. उर्दू मासिक-पत्र। सवान।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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