SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ प० सत्यनारायण कविरत्न सभी मिथ्या सभी मिथ्या, यह जीवनमरण भी मिथ्या, अब प्रेमपूरण हो चुके मुबारिक हो, मुबारिक हो । पागल होने को ऋषि-मुनि भटकते फिरते जगल मे, पागलपन समझ जाना मुबारिक हो, मुबारिक हो। असल को पा लिया जिसने उसी का नाम पागल है, पागलपन गले पटना मुबारिक हो, मुबारिक हो। सतदेव होना चाहता पागलो का बादशाह, हमको हमारी यह दुआ मुबारिक हो, मुबारिक हो। इसके बहुत दिन पीछे सत्यानारायण ने स्वामी रामतीर्थजी के विषय मे एक अष्टक भी बनाया था, जिसका नाम था श्रीरामतीर्थाष्टक यह 'सरस्वती' मे छपा था। पाठको के मनोरजनार्थ नीचे अद्धृत किया जाता है. श्रीरामतीर्थाष्टक जय जय ब्रह्मानन्द-मगन जन-मन-हरसावन, जय अमन्द सुन्दर सनेह रस सुटि सरसावन । जय विशुद्ध बेदान्त 'व्यास' नय मग दरसावन, जय सिद्धान्त उजास 'राम-बरसा' बरसावन । जय पुलकित तन पावन परम, प्रफुलित प्रिय प्रेमायतन, जय जग दुरलभ आचार्य वर, आर्य्य रत्न-गर्भा-रतन । जय तपचर्या-उदाहरण मनहरन जु अनुपम, जय नित नवल उमङ्ग भरन युवकन हिय उत्तम । जय उदार पर हित-सुधार-रत भारत प्रियतम, जय जिय जाननहार राउ अरु रक एक सम । जय वर विराग अनुराग प्रद, गद्गद हिय सत सुहृदवर, जय पद-पद पर स्वातत्र्य प्रिय, बिसद प्रेम-पकज-भ्रमर ।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy