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________________ अंग्रेजी-अध्ययन कमण्डल से जल दिया। सत्यनारायणजी थे रामफटाका-मन्दिर के शिष्य, बड़े घबराये और चिल्लू के बजाय अँगूठे के ऊपर के गड्ढे मे जल लिया और मस्तक पर चढा लिया। फिर तो ऐसे चेले हुए कि स्वामीजी की तरह ॐ ॐ पुकारते फिरते थे । इसलिए आपका नाम "ॐ" भी पड गया था । स्वामीजी के एक व्याख्यान के बाद उन्होने एक कविता पढ़ी थी, जिसके दो पद्य यहाँ दिये जाते है। श्री नटनागर आगर औ बषभान लली के अतीव पियारे । वृन्दबने ललिताई युतै अति कुंजगलीन के खेलनवारे । रक्षक भक्तन के अति ही अरु दुष्ट दयैतन मारन हारे । स्वामि हमारे सभी विधि ते कछ बन्दि कहै पद कंज तुम्हारे। हे जनरजन औ दुखभंजन गंजन सशय के तुम स्वामी । शुद्ध सनातनधर्म के रक्षक याही के कारण है रहे नामी । वाणी पियूप-प्रवाह ते आज कियो हमको कृतकृत्य अकामी। बूडत पार कर्यो हमको जय तीरथराम नमामि नमामी । स्वामी रामतीर्थजी सत्यनारायण पर बड़े प्रसन्न हो गये थे। कहा जाता है कि वे सत्यनारायण को अमरीका ले जाना चाहते थे, लेकिन उन्होने वृद्ध बाबा रघुबरदास की सेवा छोड़कर जाना उचित नही समझा । स्वामी रामतीर्थ जी जहाँ-जहाँ जाते उनके साथ सत्यनारायण भी जाते थे और उनके उपदेशों में लीन रहते थे । पढना-लिखना सब भूल गये थे। सत्यनारायण के मित्रो ने बहुत कुछ समझाया, लेकिन उन्होंने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया । लोग उन्हे पागल कहने लगे और तरह-तरह से हंसी-मजाक उड़ाने लगे। उस समय सत्यनारायण ने गजल बनाई थी - यह पागल होना तो हमको मुबारिक हो, मुबारिक हो, सभी जगधंध से छुटना मुबारिक हो, मुबारिक हो। जो कोई जानना चाहे कि दुनियाँ का रहस क्या है, इक पागलपन समाजाना मुबारिक हौ, मुबारिक हो।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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