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प० सत्यनारायण कविरत्न
उनकी समस्या-पूर्ति सुनिये
चाहे चाव चहूघा करो सतिदेव जू जोरि कही किन कासो, काहू की ह्वा तो चलै न सखी नहि जानत रीझत कीन अदा सो । राधा बिसाखा रही इक ओर न लेहु लगाय सबै ललिता सो*, जोबन जोर मरोर मे आयके कूबरीह नहि ऊबरी जासो ।
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खन्दक खाई लखै न अगार जू नैक जुबान सम्हारि के बोलो, सत्य खूब फिरो निमटे सँग बाँधि के ग्वालन को यह टोलो । वाह ! अबीर सो आँखिन फोरत | खेलनो हो रंग गाठि को घोलो, जीजा की सौह परे सरको तुम और ही मीजा टटोरत डोलो ।
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इस प्रकार के ' वाहियात छन्द-बन्दी' पर वृद्ध बाबाजी का नाराज होना स्वाभाविक था । इस दृष्टान्त को लिखते हुए हमे अग्रेजी कवि 'पोप' की बात याद आती है । जब वे वाल्यावस्था मे पद्य बनाया करते थे तो एक दिन उनके पिताजी ने इसी बात पर नाराज होकर उन्हें पीटा । बालक तो थे ही, बड़े भोलेपन के साथ आप बोले
"Papa Papa pity take
No more verses shall I make."
दिसम्बर सन् १८६६ ई० मे सत्यनारायण ने सेकेण्ड डिवीज़न में हिन्दीमिडिल पास किया और फिर वे नियमपूर्वक अंग्रेजी पढने लगे ।
* अथवा “नेह लगायो अबै ललिता सो" ।