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अंग्रेजी-अध्ययन
(सन् १८९७-१९१०) हम पहले ही लिख चुके है कि जब सत्यनारायण मिढाकुर मे पढते थे तो उनकी माता ने उन्हे अग्रेजी पढाने के लिए अंग्रेजी-मिडिल फेल एक मास्टर नियुक्तकर दिया था। लेकिन उस समय पढाई नियमानुकूल नहीं हो सकी थी। सन् १८९७ ई० मे सत्यनारायणजी ने अग्रेजीअध्ययन फिर ठीक तरह से प्रारम्भ किया। दिसम्बर सन् १८९८ ई० मे उन्होने लोअर मिडिल-परीक्षा फर्स्ट डिवीजन मे पास की और दिसम्बर सन् १९०० ई० मे सुफीदआम स्कूल से अग्रेजी-मिडिल सेकेण्ड डिवीजन मे पास किया। जनवरी सन् १९०३ ई० मे वे सैण्ट जान्स-कालेजियेट हाईस्कूल से एण्ट्रेस परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। दो बार एफ०ए० परीक्षा में फेल होने के बाद वे सेण्टजान्स-कालेज छोड़कर सेण्टपीटर्स कालेज मे भरती हो गये और अप्रैल सन् १९०८ ई० मे उन्होने सेकेण्ड डिवीजन मे एफ० ए० परीक्षा पास की। परीक्षाओ मे फेल होने का कारण यही था कि वे अपने समय का अधिकाश कविता करने में लगाते थे। इसके बाद वे मेण्टजान्स-कालेज में दाखिल होगये और सन् १९१० ई० मे बी० ए० परीक्षा में बैठे, परन्तु फेल हो गये । सन् १९०९ तथा १६१० ई० मे उन्होंने वकालत परीक्षा देने के लिए कानून भी पढा था। इस प्रकार उनका अंग्रेजी-अध्ययन-काल सन् १८६७से १६१० ई० तक समझना चाहिए। सन १८६७ ई० से लेकर १९१० ई० तक आगरे की जो धार्मिक और राजनैतिक परिस्थिति रही थी उसका प्रभाव सत्यनारायण के स्वभाव और उनकी कविताओ पर अच्छी तरह पड़ा था । सन् १९०४ ई० तक तो आगरे मे आर्यसमाज और सनातनधर्म सभाओं के झगड़े चलते रहे थे और सन् १९०५ मे स्वदेशी-आन्दोलन का युग प्रारम्भ