________________ श्रीगाधी-स्तव 209 ( 7 ) यहि अवसर जो दियो आत्मबल को तुम परिचय / लची निरंकुश शक्ति भई मुदमई सत्य जय // जननी जन्मभूमि भाषा यह आज यथारथ / पूत सपूत आप जैसो लहि परम कृतारथ / / लखि मोहन-मुखचंद तव याके हृदय उमंग है। त्रयतापहरत मन मुद भरत लहरत भाव तरंग है। (8) निज कोमल बाणी सो हिन्दू जाति जगावौ / नवजीवन यहि नीरस मानस मे उमगावो / अब या हिन्दी को सिर निर्भय उच्च उठावौ / सुभग सुमन या के पद पदमनु चारु चढावी // यह नम्र निवेदन आप सो जिनको प्रेम अनन्य है। है न्यौछावर तव चरनु पै हम जीवनधन धन्य है। सत्यनारायण