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पं० सत्यनारायण कविरत्न जय देशभक्ति-आदर्श प्रिय शुद्ध चरित अनुपम अमल । जय जय जातीय तड़ाग के अभिनव अति कोमल कमल ॥
। (४) जय बिपत्ति मे धैय्यं धरन अविकल अविचल मन । दृढ ब्रत शुच निष्कपट दीन दुखियन आस्वासन ॥ जय निस्स्वारथ दिव्य जोति पावन उज्जलतर ।
परमारथ प्रिय प्रेम-बेलि अलबेलि मनोहर । तुम से बस तुमही लसत और कहा कहि चित भरें। सिवराज प्रताप रु मेजिनी किन-किन सो तुलना करें।
(५) एक ओर अन्याय, स्वार्थ की चिन्ता बाढी । अत्याचार अपार घृणित निर्दयता ठाढी ॥ दूसरि ओर मनुष्यत्व' की मूरति निर्मल,
कोमल अति कमनीय किन्तु प्रतिपल प्रण अविचल ।। यहि देवासुर-सग्राम मे विदित जगत की नीति है। बस किंकर्तव्य विमूढ बहु भूलि परस्पर प्रीति है।
अपुहिं सारथी बने कमलदल आयत लोचन । अरजुन सो बतरात विहसि श्रयताप-बिमोचन । धीरज सब बिधि देत यही पुनि-पुनि समझावत ।
दैन्यपलायन एकहु ना मोहि रन मे भावत ॥ इक निमितमात्र है तू अहे क्यों निज चित विस्मय धरे । गोपालकृष्ण मोहन सदन सो तुम्हार रक्षा करे ।।