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________________ सत्यनारायणजी की कुछ स्मृतियाँ सम्मिलित हुआ था। समिति के उत्साही सभासद श्री जगन्नाथदासजी विशारद के उद्योग से एक दिन कवि-सम्मेलन हुआ था, जिसमे पुराने ढङ्ग के उत्तम-उत्तम कवि भी सम्मिलित थे । इस दिन बड़ा ही आनन्द आया । मैने 'सुमित्रा का लक्ष्मण को उपदेश' शीर्षक कविता पढी। उस पर गिरिधर शर्मा नवरत्नजी ने कहा कि जबलपुर के सम्मेलन मे यह कविता फिर अवश्य पढी जावे। तत्पश्चात् गिरिधर शर्माजी की "सुकन्या" नाम्नी कविता पढी गई। ये खडीबोली की कविताएँ थी। इनके बाद कविरत्नजी ने "माधव तुमहुँ भये बैसाख" और "माधव आप सदा के कोरे" इन पद्यो को बड़े मधुर स्वर मे पढा। इसका जिक्र करते हुए श्रीयुत अधिकारी जगन्नाथदासजी ने मुझसे कहा था: "उस मीटिग मे अशान्ति थी और काम शुरू नही हुआ था । मैने खड़े होकर कहा-'ब्रजभाषा के कविरत्न और खडीबोली के नवरत्न दोनों यहाँ मौजूद है । आशा है कि दोनो अपनी-अपनी कविताओ का रसास्वादन करावेगे।" सत्यनारायणजी ने कहा-"नाय-नाय, पडितजी मेरे बड़े है, इनके सामने मै नाय बोलगो।" फिर गिरिधर शर्माजी के अनुरोध करने पर सत्यनारायणजी ने 'मानुष हो तो वही रसखान' इत्यादि से कविता-पाठ प्रारम्भ किया। उपस्थित जनता ने उसे बडे प्रेम पूर्वक सुना।" सारी . सभा प्रेम मे निमग्न हो गई। उस समय भरतपुर के एक वृद्ध कविने भी अपने कवित्त सुनाये थे। उनके एक कवित्त का पिछला चरण मुझे स्मरण है। वह यह था "चन्द्र को चीर चारु राधिका बनायो है।" वास्तव मे वह कवि बड़े जानकार थे। जितने कवित्त उन्होने कहे थे उन सबके अलङ्कार वे बतलाते गये थे। कविरत्नजी ने खडे होकर कहा था--"मृदुल काव्य के ऐसे-ऐसे प्रोफेसरो से जब तक शिक्षा न ली जायगी तब तक प्रेम-रस बरसाने की गति नूतन कवियों मे कैसे आ सकती है ?"
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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