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________________ सत्यनारायणजी का व्यक्तित्व जीवनी-लेखकों के शिरोमणि प्लूटार्क ने एक जगह लिखा है-"मनुष्य के गुणो और अवगुणो की यथार्थ जाँच सदा उसके अत्यन्त प्रसिद्ध कार्यो से ही नहीं होती, बल्कि प्रायः एक क्षुद्र कार्य-एक छोटी-सी बात अथवा मजाक-से मनुष्य के असली चरित्र पर जो प्रकाश पड़ता है वह उसके लड़ाई के दिनो के बड़े-से-बड़े घिराव और युद्धो से नही पड़ सकता।" इसी आदर्श वाक्य को सामने रख कर यहाँ सत्यनारायणजी के जीवन पर दृष्टिपात किया जारहा है कवितामय जीवन पहली बात जो सत्यनारायणजी के जीवन मे दीख पड़ती है वह हैउनका कवितामय जीवन । चिट्ठियाँ प्राय कविता मे ही लिखा करते थे। १८ । ४ । १६०५ को सत्यनारायणजी के पास उनके एक मित्र का निम्नलिखित पत्र पहुंचा। आगरा १८।४।१६०५ अरे ओ पंडित, जय श्रीसत्यनारायणजी की! लल्लू तेरी तारा रूरी सरसुती मे छपी । मैंने आज देखी हो । सीतला गलीवारे बजनाथ के पास आजी आई है । द्विवेदीजीने बड़ी किरपा करी, ७० ही लैन छापी हैं । जो फुस्सति होय तो आयके देखियो औरहू काऊ की बनी बसंत वामें छपी है। हमारी और चौबेजी और पंडितजी को सला एतबार को तुम्हारे म्हाँ आइबे की भई है । जो तुम्हारी राजी होइ तो चले आमे ।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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