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पं० सत्यनारायण कविरत्न वह कोमल काकली कलित सो, सीखी, वृन्दा विपिन निवेश । मस्त कान्ह को कर कर देती, हर हर लेती हृदय प्रदेश ॥ राष्ट्र भारती के उपवन मे होती रहती थी वह कूक । कर कर दिये क्रूरताओ के उसने सदा करोड़ों ट्रक ॥ वह कोकिल, उड़ गया, गया-वह गया-कृष्ण ! दीडो लाओ। वन देवी का धन लौटाओ-सच्चे नारायण ! आओ ॥