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________________ अन्तिम पत्र और अन्तिम कविता १५७ बन्द हो गई, फिर अचानक कमर मे दर्द शुरू हुआ और सबके दबाने पर भी उन्हे बेचैनी बढती ही गई । बोलना भी बन्द कर दिया । फिर दो आदमी डाक्टर को लेने गये । सब मनुष्य ऐसी दशा सुनकर चले आये। मुझे धीरज बंधाने लगे। मैंने कई आवाज दी, सब निष्फल । उन्होने कुछ न कहा । घंटा-भर बेहोश लेटे रहे। मालिश की गई, शहद चटाया गया, पानी डाला, वह भी अन्दर न जा सका | मैं एकदम चिल्ला पड़ी । मुझे उनकी सूरत देखकर यह विश्वास भी न हुआ कि आज अन्तिम बिदाई है । अब लाख कोशिश करने पर भी मैं न पा सकूँगी! जोर से घबराकर मैंने अपना हाथ सिरहाने की तरफ पट्टी पर दे मारा। एक दम चौककर मेरी ओर देखा और सदा के लिये हतभागिनी से विदा ले ली ।" मृत्यु के दो घटे बाद डाक्टर साहब आये । ___ इस प्रकार विना समुचित चिकित्सा हुए सरल प्रकृति सत्यनारायण ने सदा के लिये आँखें बन्द कर ली | जब सत्यनारायण की उस समय की स्थिति की कल्पना करता है, जब वे मृत्यु-शय्या पर लेटे होगे, आगरा निवासी अन्य मित्रो को, बीमारी की कोई सूचना न दी गई स्मरण करते होगे, और आधी छपी प्रिय पुस्तक 'मालती-माधव' की याद आती होगी और फिर सोचते होगे कि अब डाक्टर आता है, डाक्टर अब आता हैडाक्टर नही आता, जीवन का अन्त आ जाता है मेरा हृदय भर आता है ! अधिक नही लिखा जाता। कुछ देर ठहरिये और मेरे साथ चार आँसू आप भी बहा लीजिये। शव के साथ धाँधुपुर के बहुत-से ग्रामीण मित्र गये । जो हल चला रहे थे वे हल छोड़कर और जो खेत मे पानी दे रहे थे वे पुर छोड़कर शव के साथ हो लिये । अंगूरीबाग के निकट, यमुना-तट पर, चिता बनाई गई तालेवर विद्यार्थी ने अग्नि-संस्कार किया । और कुछ ही क्षणो मे सत्यनारायण की सरल-सौम्य मूर्ति सदा के लिये आँख-ओझल हो गई !
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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