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पं० सत्यनारायण कविरत्न
श्रीमती सावित्री देवी अपने १६।१२।१८ के पत्र मे लिखती है— "चारो ओर प्लेग की बीमारी फैली हुई थी । एक आदमी के कहने पर ध्यान देकर पास के ही घर मे एक गिल्टीवाली स्त्री को देखने के लिए चले गये । जबसे बीमारी शुरू हुई थी, वे चाहते थे कि वहाँ से कही और चले जायें, किन्तु मेरे ज्वालापुर से देर मे पहुचने के कारण वे इच्छापूर्ण न कर सके । इस स्त्री को देखकर ओषधि बतलाई और वहाँ से कुछ देर बाद ही वापिस लौट पडे । मेरा आग्रह था कि बीमारी के किसी रोगी को देखने न जाय, किन्तु उस आदमी की विशेष विनती करने पर साधारण बीमारी समझकर चले गये थे। शोक । वही उनको मृत्यु का कारण हुई । वापिस लौट कर उन्होंने हमसे जिक्र तक न किया और आप ही प्रसन्नता से घूमते रहे । बाहर जाकर और लोगो से कहा भी कि मेरा चित्त व्याकुल हो रहा है । सबने कहा कि पुस्तके देखो - चित्त शान्त हो जायगा और हम भी कुछ सुनना चाहते है । उन दिनो " मालती - माधव" छप रहा था । उसका प्रूफ लाकर मुझे शिवजी की स्तुति सुनाने लगे। स्वामी रामतीर्थजी के साथ रहते हुए जो बनाया था वह "कभी मुझमे तुझमे भी प्यार था, तुम्हें याद हो कि न याद हो" सब सुनाते रहे। मैं भी सुन रही थी । मुझसे कहा कि यह तुम नोट कर लेना, मैने रामतीर्थजी की आज्ञा से बनाया था । मैं खुश हुई और चाहा कि उतार लूं, परन्तु उन्होने कहा कि अब मुझे सुनाने दो, फिर उतार लेना । कविता में ऐसे मगन थे कि उन्हें अपने शरीर की सुध न रही । रोटी आदि खाने के बाद तालेबर नामक एक लड़के से, जो ब्राह्मण स्कूल में पढता था और बीमारी की वजह से हमारे घर पर ही था, बाते करते रहे । पिपरमेण्ट आदि भी खाया । करीब ३ बजे उनके पेट मे दर्द हुआ। साथ ही कै- दस्त शुरू हुए। सुबह को ५ वजे हमने डाक्टर बुलवाया और उनसे कहा कि डाक्टर आनेवाले है । हमको चिन्तित देखकर आप हमें धैर्य दिलाते रहे और इधर-उधर की बातचीत करते रहे । डाक्टर भी बहुत रोगी देखने से न आ सके, दवाई दे दी, वह उन्होंने खुशी से पीली और चुपचाप लेटे रहे। कै आदि
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