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________________ अन्तिम दिवस और मृत्यु १४९ सत्यनारायणजी से इन्दौर मे हम लोगो का खूब मनोरंजन हुआ। मैंने कहा-मेरी पुस्तक "प्रवासी भारतवासी का नाम आपकी एक कविता मे आया है। अच्छा बताइये तो सही, कहाँ आया है ?" सत्यनारायणजी ने कहा--"यह तो हमै नॉइ मालुम" । मैने फौरन ही "श्रीगोखले" नामक कविता की ये पक्तियाँ पढी कुली प्रथा उच्छिन्न करन जिन शक्ति प्रकासी। जिनके अमित कृतज्ञ "प्रवासी भारतवासी ॥" पंडितजी बहुत हंसे और बोले--"जि तुमने खूब याद रक्खी।" फिर मैने उनसे कहा--"कभी-कभी ऐसा होता है कि कवि अपनी कविता के जिस भाव को नहीं समझता है उसे पाठक समझ जाते है ।" सत्यनारायणजी ने कहा.-'हॉ, ऐसा होता है।" मै-"आपकी कविता से उदाहरण दे सकता हूँ।" सत्यनारायण--"अच्छा बताओ।" मैने कहा--"ऐसी तूमा-पलटी के गुन नेति-नेति श्रुति गावै ।" यह पक्ति आपने 'माधव आप सदा के कोरे' नामक कविता मे लिखी है। इसमे 'तुमा-पलटी' का दूसरा अर्थ यह भा हो सकता है कि श्रीकृष्ण भगवान देवकी माता के यहाँ से जसोदामैया के यहाँ गये थे इसलिये 'तू मा पलटी' में उनपर व्यग्य किया गया है । ___ सत्यनारामणजी बडे प्रसन्न हुए और बोले-“वा | जि तुमने अच्छी अर्थ लगायौ !" इन्दौर मे सत्यनारायणजी मिस्टर सी० ए० डाब्सन' से भी मिले थे। डाब्सन साहब पहले आगरे में हेडमास्टर थे, जब वे आगरा छोड़कर इन्दौर आये थे तो सत्यनारायणजी ने उनके लिये 'अभिनन्दन-पत्र' लिखा था। इन्दौर मे सत्यनारायणजी को डाब्सन साहब के पास मै ही ले गया था । डाब्सन साहब उनसे हिन्दी मे बातचीत करने लगे। मै इस बात को
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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