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पं० सत्यनारायण कविरत्न इक निमित्त-मात्र है तू अहो, फिर क्यो चित-बिस्मय धरै.
गोपाल कृष्ण मोहन मदन सो तुम्हार रक्षा करें। इस कविता के प्रभाव को पं० वेङ्कटेशनारायण तिवारी ने “लीडर" "न्यू इंडिया" इत्यादि को भेजे हुए अपने तार मे इन शब्दों द्वारा प्रकट किया था
Pandit Kaviratna Satyanarayan of Agra read very beautıful Hindi poems composed by him, which kept the whole audience spellbound in admiration.
अर्थात् “आगरा निवासी कविरत्न प० सत्यनारायण ने अपनी रची हुई बडी मनोहर कविताएँ पढी, जिनसे प्रभावित होकर सम्पूर्ण श्रोतागण मत्र-मुग्ध-से हो गये।"
सम्मेलन को बैठक समाप्त होते ही सत्यनारायणजी की कविता की बड़ी मॉग हुई। किसी ने कहा-'पडितजी, एक प्रति हमे दे दीजिये। किसी ने कहा.--"हमारे पत्र के लिए एक कापी हमें प्रदान कीजिये।" एक महाशय अपना विजिटिङ्ग-कार्ड देकर कहने लगे-“पडितजी, इसकी एक कापी मेहरबानी करके मेरे नाम बड़ौदा भेज दीजिये। अनेक विद्यार्थी तो इस कविता के लिये मुझे तंग करते रहे। सत्यनारायणजी के पास केवल एक प्रति थी। कई प्रतियॉ तो सत्यनारायणजी ने और मैने समाचार-पत्रों के लिये नकल की, लेकिन वे प्राप्य नही थी । इसलिये इन्होंने मुझे आज्ञा दी कि और प्रतियॉ तुम भेज देना । 1. स्वयंसेवको द्वारा अपमानित उस 'गरीब बामन" के मधुर स्वर और कलित कविता-पाठ. को इन्दौरवाले बहुत दिन तक नही भूले ।
इस सम्मेलन के अवसर पर चतुर्वेदी जगन्नाथ प्रसादजी ने "सिहावलोकन" शीर्षक अपना निबध पढ़ा था। उसे सुनकर सत्यनारायणजी चतुर्वेदीजी से बोले-"बस, ब्रजभाषा से तो बरस-भर के लिये निश्चिन्त हो गया ।" ।