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________________ १४४ पं० सत्यनारायण कविरत्न हम सब उनकी प्रतीक्षा कर ही रहे थे । उनके आने से हम सबको अत्यत्न हर्ष हुआ । सम्मेलन में कविता-पाठ महात्मा गान्धीजी के सभापति होने के कारण लगभग १० - १२ हजार नरनारी सम्मेलन मे सम्मिलित हुए थे । स्वयंसेवको का प्रबन्ध ठीक नही था । अंग्रेजी विद्यालयो के कितने ही विद्यार्थी स्वयंसेवको मे यो ही भर्ती कर लिये गये थे और उन्हे किसी प्रकार की शिक्षा नही दी गई थी । अपनी मिर्जई पहनकर सत्यनारायणजी मंडप मे पहुँचे । वहाँ उनके ग्रामीण वेष को देखकर सम्मेलन के धृष्ट और असभ्य स्वयसेवको ने उन्हे बहुत तंग किया । जिस दरवाजे पर जाते, स्वयंसेवको से दुरदुराये जाते । जहाँ स्वयंसेवको के कुप्रबन्ध से रायबहादुर सेठ जमनालालजी बजाज को भी मंडप मे प्रवेश करते हुए अपमानित होना पड़ा वहाँ गँवारू मिर्जई और दुपल्लू टोपीवाले सत्यनारायणजी को कौन पूछता था । "द हमैऊ घुसि जान देउ, हमऊ देखिगे ।" वह प्रत्येक दरवाजे पर जाकर कहते थे । इस तरह की भाषा सुनकर और सत्यनारायण का वेष देखकर अग्रेजीदाँ स्वयसेवक उन्हें फटकार देते थे। बड़ी मुश्किल से वे मंडप मे घुस पाये । दूसरे रोज मै अपने साथ उन्हे मडप में ले गया था । वहाँ पहुँचकर बोले - "भूख लगी है, कछु खवाओ" । हम लोग निकट के उस स्थान पर गये जहाँ प्रतिनिधियों के भोजन का प्रबन्ध था । प्रयत्न करने पर भी कहीं भोजन नही मिल सका । लोग स्वयं मजे से भोजन कर रहे थे । बहुत कुछ निवेदन करने पर भी उनका हृदय द्रवित नही हुआ । इतने में मेरे साहित्य - विभाग का एक स्वयसेवक बाइसिकिल पर आता दीख पड़ा । उससे बाजार से कुछ फल मँगवाये । सत्यनारायणजी बेतरह भूखे थे । तेल के सेव वा बिक रहे थे, तब तक वही लेकर हम लोगों ने खाये । तत्पश्चात् मैने सत्यनारायणजी के साथ जाकर, श्रीमान् बापना साहब को आज्ञा से उन्हे उस मञ्च पर बिठला दिया जो खास-खास आदमियों के बैठने के
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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