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________________ अन्तिम दिवस और मृत्यु १४५ लिये बनवाया गया था। किसी प्रबन्ध सम्बन्धी कार्य्यं के लिये मैं इधर-उधर घूम रहा था । थोडी देर मे आकर देखता क्या हूँ कि सत्यनारायणजी अपने स्थान पर खडे हुए है ! जो कुछ हुआ था उसका वृत्तान्त श्रीमान् ठाकुरलाल सिहजी कर्मचारी रेवेन्यू विभाग, रियासत इन्दौर के शब्दो मे सुन लीजिये । ५ " मैने देखा कि कि एक सज्जन वृन्दाबनी मिरजई पहने दो पैसे की दुपल्ली सफेद टोपी लगाये, सफेद पिछौरा बगल मे दबाये हाथ मे कागजो का पुलिन्दा लिये 'नंगे पाँव कुर्सी पर बैठे है ।" मै धीरे से उनके पास पहुँचा और नीचे लिखे अनुसार बातचीत हुई । मै— क्या महाशयजी, आपके पास इस स्थान पर बैठने के लिये टिकट है ? ग्रामीण पुरुष -- ( कुछ मुसकराते हुए, परन्तु करुणाजनक भाव से) नही महाराज, मेरे पास टिकट तो नही है । मै- फिर आप यहाँ कैसे बैठे है ? ग्रामीण पुरुष -- ( उसी भाव से ) महाराज, मुझे सम्मेलन के एक उच्च कर्मचारी ने यहाँ बैठने की आज्ञा दी है । मै- क्या आप कृपा करके उन उच्च कर्मचारी का नाम बता देगे ? ग्रामीणपुरुष - महाराज, मुझे बापना साहब ने यहाँ बेठने की आज्ञा दी है । यह सुनकर मै वहाँ से चल दिया और रायबहादुर डाक्टर सरजूप्रसादजी मन्त्री- सम्मेलन के पास जाकर उनको सब हाल सुनाया । डाक्टर साहब ने हँसकर कहा -- ठाकुर साहब, क्या आप सत्यनारायणजी को नही जानते है ? यह सुनकर मेरे ऊपर वज्र-सा टूट पडा । × × × सभाविसर्जन होने पर बडी मुश्किल से पंडितजी का पता लगाया । बहुत-से मनुष्य उनको घेरे खडे थे । मैने हाथ जोड़कर कहा - "पडितजी, अनजाने
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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