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________________ १४२ पं० सत्यनारायण कविरत्न में सविनय निवेदन है कि आप कृपाकर मेरी वर्तमान स्थिति पर विचार करती हुई सावित्रीदेवी को किसी विश्वस्त पुरुष के साथ यहाँ भेज दे। उसके दोनों तरफ का किराया यहाँ दे दिया जायगा। यदि आप मेरा हित चाहती है तो कृपया इस पत्र के उत्तर-स्वरूप मे उन्हे यथासम्भव शीघ्र भेज दे। आपका सत्यनारायण देवहुती रमेश को प्यार और सब को नमस्कार । आशा है; अब आश्रम मे आप कार्य करने लगी होगी। १९ । ३ । १८ को सत्यनारायणजी ने मुझे अपने पत्र में लिखा था-"यहाँ पर प्लेग का बड़ा जोर है । अवसर पर जैसा बन पड़ेगा बैसा सेवा में उपस्थित होने के विषय मे देखा जायगा। "मालती-माधव" आधा छप रहा था कि प्लेग के कारण विचारा प्रेस ही बन्द होगया। जब छप जायगा, सेवा मे भेजूंगा। जब आप छुट्टी पर यहाँ आयेगे तब 'हृदय-तरंग' वैयार हो जायगी। सम्भव है कि आप की सेवा मे कुछ तुकबन्दी दो-चार दिन मे भेज सकूँ। पोस्ट से अथवा प० रामरत्नजी. के हाथ । हिन्दी साहित्य-सम्मेलन इन्दौर २० मार्च को श्रीयुत पं० केदारनाथजी भट्ट का लखनऊ से भेजा हुआ पत्र सत्यनारायणजी को मिला, जिसमें उन्होंने लिखा था “सम्मेलन-सेवी इन्दौर जाने के बारे मे पूछते थे । मैं तो शायद ही जा सकूँ। परन्तु मेरी सम्मति में तुम अवश्य जाना । महात्मा गाधी सभापति है, यही आकर्षण काफी है। वहाँ अपना गान्धीस्तव वा एक और सामयिक कविता पढना बड़ा अच्छा होगा।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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