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________________ १४१ १४१ अन्तिम दिवस और मृत्यु श्रीमती, यथायोग्य आपने लिखा था कि अपनी कुशलता लिखना । यकायक दो दिन से तबियत खराब हो गई है-दस्त होने लगे है- ऐसी ही दशा रही तो खाट पर लेटना पडेगा। जानकी का सिर चक्कर खाने लगा है। विचारी गिर पडी। उसके कई जगह लग गई है। जो एक बार भी खाना मिलता था वह भी नसीब होने की कम सम्भावना है । पुस्तक प्रेस मे है, इसलिये शहर आना पडता है। द्वारिका घर गया है। मेरी ही सब तरह आफत है-घरबाहर जहाँ देखो वहाँ घबडाया-सा फिरता हूँ। इसलिये यदि आप अपना और मेरा हित चाहती हों तो तुरन्त पत्र लिखते ही उत्तर स्वरूप स्वयं किसी विश्वस्तपुरुष के साथ नानाजी हो वा कुन्दन हो, यहाँ चली आइये । आपको यह सब यों लिख दिया है कि आप कहती कि मुझे सूचना न दी। इससे अधिक विपत्ति मुझ पर कभी न आवेगी। आपके घबड़ाने के डर से तार नही दिया है। इसी कार्ड को तार समझना । आपका सत्यनारायण __ श्रीमती नारायणीदेवीजी के नाम निम्नलिखित पत्र उन्होने लिखा थाश्रीमती परमपूजनीय माताजी, प्रणाम यकायक तबियत खराब हो गई है। कल से कई बार शौच भी गया हूँ। यदि ऐसा ही हाल रहा तो जल्दो खाट मे गिरने का अन्देशा है। बहिन जानकी का दिमाग घूमने लगा है। बिचारी गिर पडी । इधर पुस्तक प्रेस मे है । द्वारिका अपने घर गया है। जानकी के बीमार होने से एक दफा भी गति से भोजन नही मिलता। बीमारी की वजह से बाजार का खाने से परहेज करना पड़ता है। इस प्रकार बेबश होकर आपकी सेवा
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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