________________
१४०
पं० सत्यनारायण कविरत्न
है । यह इस ग्रामीण हृदय का सच्चा नैसर्गिक उद्गार है । इसी से ऊपर कहा है कि जो आपके द्वारा संगृहीत हुआ है, जिसे आपका अवलम्ब मिला है वह अविलम्ब ही अवश्य अवश्य प्रकाशित हो । यद्यपि आपको नही चाहिये, ( वह) आपकी कीर्ति - कौमुदी से, दिशाओ को मुग्ध करेगा, इसमे एक अक्षर भी मिथ्या नही ।
अस्तु, जब चाहे आप तब उसे भेज सकते हैं । सेवा करने के लिये हर समय तैयार हूँ । “मालती माधव " एक प्रकार से समाप्तप्राय हो चुका है । किसी सहृदय द्वारा उसकी पुनरावृत्ति होना परमावश्यकीय है । देखें, किसे ईश्वर भेजे । पीछे छपने का प्रबन्ध हो सकेगा ।
श्रीमान् गान्धीजी की प्रशंसा मे या आपकी ओर से स्वागत विषय मे तुकबन्दी करनी पडेगी, यह कृपया एक कार्ड द्वारा और सूचित कर दीजिये ।
यदि इसका शरीर निरोग -- चलने फिरने लायक भी रहा तो यथा सम्भव अवश्य आप लोगो की सेवा मे पत्र - पुष्प लेकर उपस्थित होने की प्रबल इच्छा है | भगवान विपिनविहारी से प्रार्थना है कि वह उक्त इच्छा को पूर्ण करे । सब प्रेमियो को प्रणाम !
आपका
सत्यनारायण
आज मैं प्रयागराज जा रहा हू । यदि आप उचित समझे तो अधिकारी जगन्नाथदास विशारद विरक्त मन्दिर, भरतपुर से अथवा चित्रमय जगत के भूतपूर्व सम्पादक से लिखा-पढी करे । मुझे तो वह ठीक-ठीक उत्तर हो नहीं
स० ना०
देते । श्रीसावित्री देवी तथा उनकी माता नारायणी देवी के नाम पत्र ता० ८ मार्च को सत्यनारायणजी ने निम्नलिखित पत्र श्रीमती सावित्री देवीजी के नाम भेजा था --