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________________ अन्तिम दिवस और मृत्यु खयाले खाम है अपनों से फायदा पाना | सदफ के काम किसी दिन गौहर नही आता ॥ अज़ल खफा है और फलक मुद्दई जिमी दुश्मन | कोई ज़माने मे अपना नजर नही आता ॥ करूँ मै दुश्मनी किससे, कोई दुश्मन भी हो अपना । मुहब्बत ने जगह छोड़ी नही दिल मे अदावत की ॥ श्रीयुक्त भाई बनारसीदासजी, पालागन आपका दर्शनाभिलाषी -- सत्यनारायण १३९ मेरे नाम पत्र ता० १२ फर्वरी १९१८ को सत्यनारायणजी ने मेरे नाम निम्नलिखित पत्र भेजा था -- १२ । २ । १८ ब्राह्मण स्कूल मिला है। हाँ, आज ११ दिन पीछे आपका कृपा-पत्र श्री पाठकजी से पूर्णानन्दसिंहजी ( सम्पूर्णानन्दजी ?) का एक पत्र आया था । उसका मैने उसी समय उत्तर दिया था । आपका क्या, समग्र चतुर्वेदी जाति का, यह शरीर चिरऋणी है । जिस पैतृक प्रेम से आप लोग मेरे साथ बर्ताव कर रहे हैं उससे उऋण होना इस जन्म मे तो कठिन है । उऋण होने से यदि सम्बन्ध टूटने की बात हो तो मुझे वह उऋण सोने का भी नही चाहिये । - विश्वास -- हुआ कि 'हृदय-तरंग' इस संसार मे X X* । इसमें अतिशयोक्ति नही अ. पके पत्र के ज्ञात -1 उठ सकेगा; क्योकि X * यहाँ पर सत्यनारायणजी ने लेखकके विषय मे कुछ ऐसी अत्युक्तिमय प्रशंसात्मक बाते लिखी थी जिनका उद्धृत करना अनुचित प्रतीत होता है । लेखक
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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