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पं० सत्यनारायण कविरत्न
दुःख होगा कि रात-दिन यही चिन्ता रहती है कि किस वक्त सब जान लेने के लिये यहाँ आजाये । लेकिन बड़े दुख की बात है कि हरेक पत्र मे इतना खुलासा करके लिखती हैं और किसी की जान नही लेती। सिर्फ अपनी जान बचाने के लिये तुमको लिख दिया था लेकिन चारों तरफ आप सबो के पत्रो की बौछार हो रही है। तुमने जो लिखा है कि इस विषय मे आज अधिक नही लिखुंगा ? थोडा तो इतना लिखा जाता है, ज्यादा और कितना होगा ? न जाने परमात्मा इन चिट्टियो का कब अन्त करेगा । उसकी बड़ी ही दया समझो तो मुझको अपनी जिन्दगी मे पत्रों की बौछार बन्द हो । पर हॉ, ये तो मै जानती हूँ कि मेरे मरने के बाद सबके कागज कलमो को विश्राम लेना पड जायगा और आपकी त्रिवेणी जो बह निकली है सो मुझको खाकर द्विवेणी बहती रहेगी। सो वो तुम्हारे कर्मो का फल है। द्विवेणी को मै दूर नही कर सकती। अपनी जान खोकर त्रिवेणी का एक हिस्सा दुख दूर कर सकती हूँ। बाकी नहीं । आप मेरे पास पत्र न डाले तो मै तीव्र कटु पत्रों की बौछार क्यो करूँगी ? मै तो जो भी लिखती हूँ वो सच ही लिखती हूँ। मै कटु शब्द नही लिखती और असीम इच्छा को स्पष्ट शब्दो मे लिखकर अनुगृहीत ही करती हूँ कि आप मुझसे किसी प्रकार की आशा न रक्खे और मेरी जान मुझको बख्श दे। अगर ये बात तुम्हारी समझ में नहीं आती और बार-बार हरेक खत में यही लिखा आता है कि तुम्हारी इच्छा क्या है सो मै तो लिख चुकी। इसके विरुद्ध चलकर आप मेरी जान के गाहक बनेंगे, बस यही होगा। दुनियाँ में हजारों पुरुष है जो बड़े-बड़े उपकार करते हैं। आपने मेरी जान लेने को ही उपकार समझ रक्खा है। अच्छा है भविष्य विषयक जो धारणाएँ है, या जो आप सबो ने भविष्य में करने के लिये विचार रक्खी है, ये सब जीते जी के झगड़े है । और अच्छा है, आप सबो की इच्छा इसी मे है कि जान लेनी चाहिये । ईश्वर तुम्हारी इच्छा को पूरी करे । ठकुरिया का तमस्सुक तुम्हारी बहिन जानकी ने उससे लेकर रक्खा है, मेरे पास नही है । इस महीने मे या और महीनों मे मेरा कोई मतलब भेजने का