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________________ गृह-जीवन १२५ इस पत्र का जो उत्तर श्रीमती सावित्री देवी ने ३ अगस्त १९१६ को दिया था वह ज्यो का त्यो उद्धृत किया जाता है। ओ३म ता० ३-१९१६ पंडितजी. तुम्हारा पत्र आया। आपने जो लिखा है कि विचारे ने न कभी अनुचित परामर्श दिया उनके दो लम्बे-चौड़े तख्ते लिखे हुए मेरे पास आये है जिनमे मेरी बुराई अखबारों में छापने तक की धमकी दी है। अपने घर के खाली प्रेस मे दूसरो की लड़कियो की बुराई छापने का घमंड है । जो अपनी बेटी-बहिन की इज्जत का कुछ भी ख्याल नहीं करते उनके ही दिमाग मे ऐसे तुच्छ विचार पैदा होते है । मै नही चाहती कि उनसे पत्र-व्यवहार करूँ। और उन्होने लिखा है कि मेरी श्री ने तुमको पतिव्रता के बारे मे उपदेश दिया था, सो तुमने घर जाकर हँसो उड़ाई । मैने तुमसे कहा था कि वे ऐसा कहती थी अगर वो पतिव्रता होगी तो अपने लिये होगी। वे स्त्री-पुरुष जुदे रहे या मिल के रहे, मै उन्हे शिक्षा देने नही जाऊँगी । इसलिये मै नही चाहती कि वो मेरी किसी बात मे बाधा डालें । अगर वो या तुम सब इस बात मे ही पक्के हो तो तुम्हारी इच्छा । परन्तु मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता । और ये भी लिखा था कि जब उनसे कुछ जिक्र आता है तो आँखों मे आँसू भर लाते है । सच पूछो तो मै तो पतिव्रता हूँ नही, न मुझसे आगे को आशा रक्खे । और इससे अच्छा भला और क्या है कि आपको ऐसी दशा मे जरूर पतिव्रता ढूँढनी चाहिये जिससे मेरे दारुण दुख दूर हो, और मेरी जान बचे । और आपने जो लिखा है कि दस्त-ब-दस्त असालतन के आप के ही हजूर मे फ़रियाद की अर्जी लेकर हाजिर हूँगा तो तुम तो स्वतत्र हो । पर हॉ, स्वतंत्र तो मै भी हूँ; परन्तु तुमने और तुम्हारे मित्रो ने मेरी जान लेने के लिये परतत्र अपनी बुद्धि मे समझ रक्खा है इससे ज्यादः मुझे और क्या
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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