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________________ १२४ पं० सत्यनारायण कविरत्न रहा तो शीघ्र ही यहा से x x x । फिर आपकी प्रार्थना अपने आप ही x x x x 1 इसलिये आप को अपने अमूल्य प्राणो को संकट मे डालने का प्रयोजन नही है, और न प्रत्येक पत्र मे इस मंत्र के लिखने की आवश्यकता है । इस समय मेरा शरीर अच्छा नहीं है । चीदह या पन्द्रह दिन से आखून के दस्त हुए ही चले जाते है और ३ दिन से दूसरी आँख भी दुखने आई है। दर्द के मारे बेचैन हूँ । ऐसी दशा मे मैने कुछ अनुचित लिखा हो उसके लिये क्षमा प्रदानार्थ पुन प्रार्थना है । जिसमे आपका लोक-परलोक सुधरे, आत्मगौरव बढ़े एवं भविष्य समुज्ज्वल हो वही करिये । आपके विषय मे कुशल पूछने के लिये, आपको यथोचित साहाय्य देने के लिये ही यदि आवश्यकता हो, मेरा ईश्वर दत्त अधिकार है, आप पर लट्ठ चलाने के लिये नही, और आपको अदालतो मे घसीटकर व्यथित करने के लिये नही । आप चाहे जो कुछ करें; किन्तु मुझे अपना दायित्व (फर्ज) मालूम है । साक्षरा होकर मेरी प्रकृति राक्षसा नही बनेगी । हाथ गहे की लाज से अथवा दुनिया के लिहाज़ से क्या मै आपसे आशा करूँ कि आप मेरी इस व्यथित एव विपन्नावस्था मे कटु तथा तीव्र पत्र लिखने की कृपा न करेगी और अब भी अपनी असीम इच्छा को स्पष्ट ( साफ-साफ शब्दो मे लिखकर अनुगृहीत करेगी । अन्त मे आपको परमपिता परमात्मा की कसम खिलाकर प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरे इस पत्र को सुरक्षित रक्खे और इसे पढकर इस पर यथोचित ध्यान दें । व्यर्थ ही कूड़े की टोकरी मे न डाल दे, न इसे फाड़े और न इसे चिरागुअली के सुपुर्द करें। आशा है, आप स्वीकार करेंगी । ठकुरिया का कागज़ कहाँ रक्खा है ? सूचित कीजिये । सम्भव है, उससे रुपये मिल जायँ । सबको प्रणाम । • आपका सत्यनाराण
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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