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________________ ( ८ ) पर इतना निवेदन कर देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ कि सत्यनारायण जी के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा के कारण मै उस सन्तुलन को कायम नही रख सका, जो एक निष्पक्ष लेखक के लिये अत्यन्त आवश्यक है। कविरत्न जी के असामयिक देहावसान से मेरे हृदय मे जो भाव उठे, मैंने उन्हे ज्यों का त्यों चित्रित कर दिया है। अन्तरात्मा के प्रति वफादारी किसी भी लेखक के लिये प्रधान गुण है, लोगों की सम्मति सर्वथा गौण । सत्यनारायण जी ने स्वप्न मे भी यह आशा या आशङ्का न की होगी कि कोई उनका जीवन-चरित लिखेगा, वे इतने भोलेभाले और विनम्र व्यक्ति थे। फिर भी कई वर्ष के परिश्रम के बाद उनका यह जीवन-चरित प्रस्तुत किया गया था। यदि इसमे उनके आकर्षक व्यक्तित्व की कुछ भी झाकी पाठकों को मिल सके तो मै अपने प्रयत्न को सफल समझेंगा। बन्धुवर ज्योति प्रसाद मिश्र निर्मल जी को धन्यवाद देना हिमाकत होगी, क्योकि वे ३५-३६ वर्ष से हमारे इतने निकट है। ९९ नार्थ ऐवेन्यू, नई दिल्ली।। बनारसीदास चतुर्वेदी पुनश्चः___ भाई हरिशङ्कर जी शर्मा का यह आदेश है कि मै उस परिश्रम का जिक्र भी न करूं, जो उन्होंने इस संस्करण के संम्पादन और प्रूफ संशोधन में किया है। अपने अग्रज की इस आज्ञा का अक्षरशः पालन करना मेरा कर्तव्य है।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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