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५० सत्यनारायण कविरत्न
सत्यनारायणजी ही उसकी स्वागत-समिति के प्रधान बनाये गये। श्रीमान् श्रीधर पाठकजी इस प्रान्तीय-सम्मेलन के अध्यक्ष थे। इन दोनों कवियो का सम्मेलन वस्तुत मणि-काञ्चन-संयोग की तरह था । इसी कारण सम्मेलन का सम्पूर्ण कार्य-क्रम बडी सफलता से सम्पन्न हुआ। हिन्दी के अनेक विद्वान् लेखक और कवि इस सम्मेलन में सम्मिलित हुए थे। सत्यनारायणजी का स्वागत-भाषण वैसा ही सारगभित था जैसा पाठकजी का अध्यक्षीय भाषण।
सत्यनारायणजी ने अपने भाषण के प्रारम्भ मे श्रीमान् पाठकजी के विषय मे निम्नलिखित पद्य पढा था--
परम पुण्यमय विश्व-प्रेम के जो रंगराँचे । उर उदार अति सदय हृदय सहृदय जग साँचे ।। मजु मधुर मृदु सरस सुगम सुनि सुठि जिन बानी।
नस-नस नव जातीय ज्योति विद्युत लहरानी। श्रीधर भाषा-साहित्य के, जे अस' कविकोविद प्रवर ।
सत सादर नित सबको नवत, सीस नाय जुग जोरि कर॥ भाषण के अन्त मे श्रीमान् पाठकजी से सभापति का आसन ग्रहण करने के लिये, सत्यनारायणजी ने निम्नलिखित शब्दो में प्रार्थना की थी -
प्रकृति मधुर प्रिय परम विदित नय नागरि नागर । भव्य भारती बिमल विभाकृत विशद उजागर ।। पुण्य राष्ट्रभाषा-उत्कविकुल अग्रगण्य वर । अखिल आगरा-रत्न समुज्ज्वल नितनव श्रीधर ॥ श्री श्रीधर पाठक करि कृपा, मंजुल मुद मगल करन । यहि सभापती आसन सुभग, करहि सुशोभित मन हरन ॥ सम्मेलन समाप्त होने पर सत्यनारायणजी ने श्रीरवीन्द्रनाथ के एक