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फीरोजाबाद मे आगरा-प्रान्तीय सम्मेलन
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सुप्रसिद्ध पद्य का अनुवाद सुनाकर उपस्थित श्रोतृवृन्द को मन्त्र-मुग्धसा कर दिया था । वह अनुवाद यह था --
भगवन् । मेरा देश जगाना । स्वतत्रता के उसी स्वर्ग मे, जहाँ क्लेश नहिं पाना। स्चे जहाँ मनको निर्भय हो ऊँचा शीश उठाना । मिले बिना कुछ भेद-भावके सबको ज्ञान खजाना ॥ तग घरेलू दीवारो का बुना न ताना-बाना । इसीलिये बच गया जहाँ का पृथक्-पृथक् हो जाना ॥ सदा सत्य की गहराई से शब्दमात्र का आना । पूरणता की ओर यत्न का जहाँ भुजा फैलाना ॥ बिमल बिवेक सुलभ सोते का जो रसपूर्ण सुहाना ।। रूढि भयानक मरुस्थलो मे जहाँ नही छिप जाना ।। जहाँ उदारशील भावो का भावै नित अपनाना।
सच्चे कर्मयोग मे प्रतिजन सीखे चित्त लगाना ॥ सत्यनारायणजी के इस सुखद सुन्दर गीत की सुमधुर ध्वनि अब भी उन लोगो के कानो मे गूंज रही है, जिन्होने इसे फीरोजाबाद मे सुना था ।
अष्टम हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन, इन्दौर ___ सम्मेलन के इस अधिवेशन मे भी सत्यनारायणजी सम्मिलित्त हुए थे। इसका विवरण सत्यनारायणजी के अन्तिम दिवस शीर्षक अध्याय मे दिया गया है। __इस अध्याय से पाठको को पता लग गया होगा कि सत्यनारायणजी का जीवन कितना साहित्यमय था । सहृदयता और सरलता के साथ-साथ जिस सद्गण ने उनका व्यक्तित्त्व ऐसा आकर्षक बना दिया, वह था उनका कवित्व । श्रीयुत गोकुलानन्दप्रसाद वर्मा ने “साहित्यिक रुचि और जीवन" शीर्षक एक लेख मे लिखा था-"आँखे उठाइये, अब भी अपने हिन्दी ससार मे आप बहुतेरे सज्जनो को देखेंगे जो सच्चे साहित्यसेवी है, जिनका जीवन सच्चा