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________________ श्रीसरोजिनी षट्पदी श्रीसरोजिनी-षट्पदी जब श्रीमती सरोजिनी देवी आगरे पधारी थी तब आगरा कालेज में उनके स्वागत मे सत्यनारायणजी ने निम्नलिखित कविता पढी थी श्रीसरोजिनी-षट्पदी जय जय सहृदय सदय सुहृद कवि गुन गन आगरि । नय नागरि प्रिय परम गोखले कीति उजागरि ।। कोमल कवित कलाप अलापिनि नित नव नीको। लोल बोल अनमोल चखावन हारि अमी की ॥ जय भेद भाव के हरन को, सुकृत सुदृढ सकल्प वर। चित चकित करनि मुद भरनि नित, निज दिखाइ प्रतिभा प्रखर॥१॥ आरज सुजस सुगध सुहावन विपुल विकासिनि । विहंसत अधर सुदल सो अनुपम छटा प्रकासिनि ।। नव जातीय सरोवर की सुखमा सरसावनि । प्रेम प्रस्फुटित पुण्य प्रभा प्यारी दरसावनि ।। नित मन बच क्रम सो रचिर तर, नूतन भाव प्रयोजनी । प्रिय यथार्थ चरितार्थ तव, यासो नाम “सरोजनी ॥२॥ लखि तव प्रफुलित दर्स हमारो होत सुनिश्चय । दुख की बीती रेनि उदित अब सूर्य अभ्युदय ।। कर्म भीरु उल्लूक लुकन अब लगे अभागे । देश भक्त वर भ्रमर, भ्रमत गुजारन लागे । श्रुति मधुर मुदित द्विज गान को, छाइ रह्यो उत्कर्ष है। अभिनव आभा सो पूर्ण यह, देखहु भारतवर्ष है ॥ ३ ॥ निरुत्साह हेमन्त और पतझर के मारे। सके न मछु करि बिबस यहाँ के लोग बिचारे ॥
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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