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गोखले के स्वर्गवास पर कविता इसी कारण सत्यनारायणजी को बबूल-वृक्ष बहुत प्यारा था । वे उसे 'सजीवनमूरि' कहा करते थे। प्रेम-मग्न होकर कभी-कभी बबूल वृक्ष की परिक्रमा भी करते थे और उसके गुण-वर्णन करते-करते मुग्ध हो जाते थे।
'विज्ञान' मे आपने बबूल की उपयोगिता पर एक लेख भी लिखा था और उसमे उस दवा का भी उल्लेख था जिसने आप को लाभ पहुंचाया।
श्रीमान् गोखले के स्वर्गवास पर कविता सत्यनारायणजी ने निम्नलिखित पद्य माननीय गोपाल कृष्ण गोखले के स्वर्गवास पर लिखे थे
श्रीगोखले
परम पूज्य सतकर्म-निष्ठ नय-नीति सुनागर । अति उदार चित नित नव-ज्ञान प्रकास उजागर ।। जासु बचन बरषा सो नवल हृदय लहराये ।
आक जवास क्रूर जन पजरे मनहिं लजाये । शिक्षा अनिवार्य प्रचार-हित कृत प्रयत्न पुरुषार्थ पर । निस्पृह नि स्वारथ द्विजकमल हस-वस-अवतस वर ॥१॥
श्रीरानाडे शिक्षा की प्रिय प्रतिमा निरमल । भारतीय-जातीय-समिति-कर प्रभा समुज्ज्वल ।। सदा रह्यो दुरभेद्य प्रबल जाको यह निश्चय । भारत नित ईश्वरमय ईश्वर नित भारतमय ।। यो देशभक्ति हरिभक्ति में, रचि अभिन्नता चार तर । गोपालकृष्ण सत्कथन सो नाम, रुचिर चरितार्थ कर ॥२॥ कुली-प्रथा उच्छिन्न करन जिन शक्ति प्रकासी। जाके अमित कृतज्ञ प्रवासी भारतवासी ॥