________________
प० सत्यनारायण कविरत्न
और कोकिल कठ ही इसका मुख्य कारण था। जिसने उनके मुख से उनकी कविता सुनी वह उसे भूला नही।
सत्यनारायणजी की बीमारी सन् १९१२ के अन्त मे सत्यनारायणजी को श्वास की बीमारी हो गई थी। इस बीमारी के कारण उनको बहुत कष्ट उठाना पड़ा। सन् १९१३ मे उन्होने अपने मित्रो को जो चिट्ठयाँ लिखी थी उनमे प्राय अपनी इस बीमारी का जिक्र किया। भारतीभवन, फीरोजाबाद के प्रबन्ध-कर्ता लाला चिरजीलाल को उन्होंने १३ जून के पत्र मे लिखा था-'मेरी तबियत वैसी ही है । खॉसी कुछ जोर और पकड गई। सोते-सोते सॉस-नही ऊँची-ऊँचो सॉस वेग से चलती है। उससे सो भी नहीं सकता।"
२० जुलाई सन् १९१३ के पत्र में आपने फीरोजाबाद के डाक्टर लक्ष्मीदत्त को लिखा थाभैया लक्ष्मीदत्त, ग्रसि लयो पुनि मोहि बुखार ने,
नहिं गयो यहि कारन आगरे । अधिक द्योसनि सों कछु ना परी,
___खबरि उत्तर-रामचरित्र की। किन्तु बुखार-प्रताप सो, कास-स्वास सताप ।
बहुत अश मे अब भयो, न्यून आपसों आप॥ फिर १० सितम्बर के पत्र मे आपने लाला चिरंजीलालजी को लिखा था-"खॉसी चली जाती है । थाइसिस रोग मिटाने में निपुण तथा इस कार्य मे परीक्षोत्तीर्ण यहाँ पर परम प्रसिद्ध दो डाक्टरों के पाले पड़ा हूँ-- Assistant civil surgeon, मुहम्मद इस्माइल तथा स्वतंत्र जीविका-भोगी डाक्टर मुरारीलाल" । १४ मई १९१४ को आपने उक्त सज्जन को लिखा था-"मेरी खाँसी और सांस का हाल पूर्ववत् ही समझना चाहिये । ऐसी