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________________ प० सत्यनारायण कविरत्न एक प्राण हो उच्चस्वर से यदि हम रुदन सुनावें। सोते हुए शेष-शायी भी जगकर दौडे आवे ।। उनसे ही कहना यथार्थ है वे सच्चे महाराज । अपनी जन्मभूमि का हमको जान रखेगे लाज ॥ "श्रीगुरु नानक के यात्री" रवीन्द्र-वन्दना जब बिश्वकवि श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर आगरे पधारे थे, तब सत्यनारायणजी ने उनकी सेवा मे निम्न लिखित कविता भेट की थी। रवीन्द्र-वन्दना जय-जय कवि-कुल-तिलक भारती देवि उपासक । रुचिर रम्य सद्भाव सुभग कर निकर प्रकासक ॥ जय-जय भारत-कीर्ति धवल धुज जग फहरावन । विद्युत इव जातीय प्रेम नस-नस लहरावन । जय विश्वविदित विजयी प्रमुख, सौम्य मूर्ति तव लसत नित । जिहि लखि-लखि प्रचुर विदेश जन, होत नेह नत चकित चित ॥१॥ जय जय सहृदय सदय सुहृद नय नागर नीके । बिमल बोल अनमोल चखावन हार अभी के । सुखद 'ब्रह्मविद्यालय' 'शान्तिनिकेतन' थापक । पुण्य प्रभा प्रतिभा के पूरन प्रियतम ज्ञापक ॥ जय जयति बंग-साहित्य के, उन्नतकर अनुपम अमल । निज कविताकर विस्तारि वर, विकसावन जन हिय कमल ॥२॥ सदशिक्षा-आराधन 'साधन' गुन गन आगर । योगी उपयोगी कारज कृत सुफल उजागर ॥
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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