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________________ करुणा क्रन्दन जहाँ जॉय तहँ बडी घृणा से बल से जाँय निकाले । प्रजा भूप निर्बल ऐसे की कहलाते हम काले || काले हैं सन्देह नही हम किन्तु हृदय के गोरे । उच्च उदार सभ्य भावो से है नहिं बिलकुल कोरे ॥ जब जब जन्म देइ जगदीश्वर तब तब हम हो काले । उन गोरो से सदा बचावै जो स्वारथ मतवाले ॥ ऐरे गैरे पचकल्यानी चले हिन्द मे आते । हम आरत भारतवासी कहिँ पैर न रखने पाते || इस जहाज़ के लौटाने मे हमै न कुछ सकोच । पर इङ्गलैण्ड कलंकित होगा यही हृदय मे सोच ॥ जो इस तरह तरह दे देगा सम्मुख नही अडेगा । तो प्रचण्ड सब रोष सिंहका जग मे सिथिल पडेगा || होते हुए नाथ के सिर पर हिन्दी जाति अनाथ । करे सहानुभूति नहि कोई भुविपर इसके साथ || रहना या मरना है इसको कठिन प्रश्न ये भारी । एक इसी के सुलझाने से सुलझे उलझन सारी ॥ ऐसा क्यो कमजोर बनाया हमको निरदय देव | जो इस भाँति भोगना पडता हमको दु.ख सदैव ॥ कठिन परीक्षा समय हमारा आगे नही टलेगा । बिना जॉच मे पूरा उतरे अब नहि काम चलेगा ॥ "देव सहाय उसे देता है जो निज करें सहाय" । इसमे रख विश्वास हमै मी करना उचित उपाय ॥ तते हुए पराये मुख को अब तक बहु दुख भोगा । अब से मारग सुगम आप ही अपना करना होगा || कुछ चिन्ता नहिं जो विपदा ने इतना हमे सताया । जगमगाय उतना ही सुबरन जितना जाय तपाया ॥ ६१
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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