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________________ प० सत्यनारायण कविरत्न कामागाटामारू की दुर्घटना बाबा गुरुदत्तसिंह और उनके साथी कामागाटामारू जहाज से कनाडा गये थे, परन्तु वहाँ से लौटा दिये गये, उस घटना से देश मे बडा आन्दोलन हुआ । सत्यनारायणजी ने उस समय " श्री गुरुनानक के यात्री" के नाम से निम्नलिखित कविता 'प्रताप' मे प्रकाशित कराई थी । करुणा- कन्दन ६० रे हतभागी भारत देश । कितना और अधिक बाकी है सहना तुझे कलेश || सोचा था जब यहाँ नृपतिमणि पञ्चम जार्ज पधारे । धन्य आज से हुए परम हम जागे भाग हमारे ॥ स्वीकृत किया हमे श्रीमुख से अपनी प्रजा पियारी ॥ शिक्षा का उत्साह दिलाया दी आशाये सारी ॥ ब्रिटश-सुराज मात्र की जैसे और प्रजा सुख पावै । वैसा ही अधिकार कदाचित हमको भी मिल जावै ॥ वर्ण-भेद का नही लगेगा अबसे कोई रोग । विमल नागरिक स्वल प्राप्त कर भोगेगे सुख भोग || बृटिश-पाणि-पल्लव-छाया मे जी चाहे जहँ जावें । बहु दिन त निज सिर ऊचा कर फिर इक बार उठावें ॥ निरपराध हमको यदि कोई अबसे कहीं सतावै । तो उसके निरदय पञ्जी से 'ग्रेट ब्रिटेन' बचावै ॥ इन आशाओ के सपनों ने जैसे जी बहलाया । कान पकड़ 'कैनेडा' के लोगो ने हमे जगाया || जग को जो आश्रय देते थे सहकर भी दुख सारे । फिरैं निराश्रय उन ऋषियो के सुत यो मारे-मारे ॥ होता अगर हमारे सिर पर कोई हित हमारा । रक्खा रह जाता बस घर मे यह कानून तुम्हारा ॥
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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