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________________ पति-पत्नी-सवाद प्यारे । बस हो चुका तुम्हारा काम, न करिये देर । कौन सुनेगा, किससे कहिये, छाया अनि अन्धेर ॥ प्रिये । यह कापुरूषो का काम । अभी चलें, पर स्वबान्धवो का होगा क्या परिणाम ? कहाँ जॉयगे करेगे कैसे वे निष्क्रिय प्रतिरोध ? राजनीति का जिन्है न प्यारी, हाय । जरा भी बोध ॥ यही रहेंगे निज स्वत्वो के लिए करेगे युद्ध। चाहे प्राण रहो या जाओ सोचेगे न विरुद्ध । जननी जन्मभूमि का भारी चलने मे अपमान । ऐसे अत्याचारों से क्या खो दे अपनी आन ? कठिन परीक्षा समय हमारा उचित न करना भूल । इसमे जय होते ही होगा हमे दैव अनुकूल ॥ सदा सत्य की जय होती है यह निश्चय विश्वास । पूरा होगा निर्भय रहिये, मत हूजिये निरास ।। भूल व्यक्तिगत बिथा, जानि के इसे देश का काज । जगदीश्वर सब भला करेगे, वही रखेगे लाज । यहाँ यह भी बतला देना आवश्यक है कि यह कविता उस वार्तालाप के आधार पर रची गई थी जो महात्मा गाधीजी तथा माता कस्तूरबा के मध्य हुआ था। उन्ही दिनो सत्यनारायणजी ने 'गाधी-स्तव' शीर्षक कविता 'प्रताप' मे छपवाई थी। कुछ परिवर्तन करके यही कविता उन्होंने इन्दौर मे अष्टम हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के अवसर पर भी पढी थी। वह कविता सत्यनारायणजी के उक्त सम्मेलन में सम्मिलित होने के प्रसंग मे उद्धृत की गयी है।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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