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________________ श्रीचतुर्विशतिजिनस्तुति । अर्थ- हे भगवन् ! आपने मणि और रत्नोंसे परिपूर्ण ऐमी इस साम्राज्यलक्ष्मीको धर्मपत्नीके समान कोमल करसे उपभोग किया था । भावार्थ- जिसप्रकार धर्मपत्नीका उपभोग कोमल हाथोंसे किया जाता है उसी प्रकार भगवान् कुंथुनाथने राज्यलक्ष्मीका उपभोग भी बहुत थोडा कर लगा कर किया था । तथा अंतमें उस लक्ष्मीकी चंचल प्रवृत्तिको देखकर नित्यसुख और शांति प्राप्त करने के लिये उससे वे विरक्त होगये थे। वैराग्यशस्त्रैः खलकर्मशत्रून् विजित्य जातः शिवलौख्यदाता। स्तुत्वा भवन्तं जिनभक्तभव्या सवन्ति वंद्याश्च नरामरेन्द्रः॥४॥ अर्थ- हे भगवन् ! आप वैराग्यरूपी शस्त्रोंसे कर्मरूपी दुष्ट शत्रुओंको जीतकर मोक्षसुखको देनेवाले होगये हैं। हे प्रभो! भगवान् जिनेन्द्र देवकी भक्ति करनेवाले भव्यजीव आपकी स्तुति करनेसे इन्द्र और चक्रवर्तिओके द्वारा भी पूज्य और वंदनीय हो जाते हैं। श्रीकुंथुनाथेन दयालुना च ___ कुंथ्वादिजीव प्रतिपालनाय । मोक्षपदाया सुक्ने दयायाः मार्गःप्रणीतः सुखदस्त्वयैव ॥५॥
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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