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________________ ~~~~ ~~ श्रीकुंथुनाथस्तुति । अर्थ- हे भगवन् ! कुंथुनाथ परमदेव ! आप अत्यंत दयालु हैं । इसीलिये आपने कुंथु आदि समस्त जीवोंका प्रतिपालन वा रक्षा करनेके लिये इस संसारमें मोक्ष देनेवाली दयाका सुख देनेवाला मार्ग निरूपण किया है । त्वत्पादयुग्मं स्पृशतां जनानां दुःस्वप्नदोषाः कफवातजन्याः। कदापि तेषां न भवन्ति रोगा' देहे न पीडा हृदि कापि चिन्ता॥६॥ ___ अर्थ- हे प्रभो ! जो भव्यजीव आपके चरणकमलोंका स्पर्श करते हैं उनके न तो दुःस्वमके दोष उत्पन्न होते हैं न उनके शरीरमें कभी वात पित्त कफजन्य कोई रोग होते हैं, न उनके शरीरमें कोई और पीडा होती है और न उनके हृदय में कोई चिंता उत्पन्न होती है। त्वन्नाममंत्रो हृदि यस्य तस्य चिन्तामणिः कल्पतरुश्च दासः। साम्राज्यलक्ष्मी वि मुक्तिकन्या वा कामधेनुर्भवति स्वदासी ॥७॥ अर्थ- हे भगवन् ! जिनके हृदयमें आपका नामरूपी मंत्र विराजमान रहता है, उनके यहां चिन्तामणि और कल्पवृक्ष दासके समान रहते हैं, तथा छहो खंडकी राज्यलक्ष्मी, मुक्ति
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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