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________________ श्रीशान्तिसागरचरित्र। है, उसने श्रावकके व्रत धारण किये हैं और श्रावकोंका शिरोमणि कहलाता है। चतुर्थः कुम्भगौडाख्यो विरक्तो भवभोगतः। मोहं विहाय मोक्षार्थी ब्रह्मचारी वरोऽभवत् ॥३२ अर्थ- चौथा छोटाभाई कुंभगौडा है, वह संसार और भोगोंसे विरक्त है और मोक्षकी इच्छा करनेवाला है, वह भी मोहका त्यागकर श्रेष्ठ ब्रह्मचारी होगया है। तृतीयः सातगौडाख्यो जगच्चूडामणिर्जिनः । ममात्मसुखदाता च सूरिः श्रीशान्तिसागरः॥३३ अर्थ-तीसरे भाईका नाम सातगौडा था, जो अब जगतके चूडामणि मोहरूपी शत्रको जीतनेवाले और मेरे आत्माको सुख देनेवाले आचार्य शांतिसागरके नामसे प्रसिद्ध हैं। चन्द्रमत्यर्यिका जाता गुरुवर्येण दीक्षिता । अन्येषां दीक्षितानांच गणना कथ्यतेऽधुना॥३४ ___ अर्थ- आचार्य शांतिसागर महाराजने चन्द्रमती को दीक्षा देकर अर्जिका बनाया था। और भी जिन जिनको __ आचार्यने दीक्षा दी है, उनकी केवल संख्या दिखलाते हैं। वंधनाचार्यवर्येण शान्तिसागरयोगिना । 'दशैव मुनयः पूताः पूज्यपादेन दीक्षिताः॥३५॥ अर्थ-- जिनके चरणकमल पूज्य हैं और जो सबकेद्वारा _वंद्य हैं, ऐसे आचार्य शांतिसागर मुनिने दीक्षा देकर दश
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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