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________________ श्रीशान्तिसागरचरित्र । पवित्र मुनि बनाये हैं। क्षुल्लका गुरुवर्येण पंचदशैव दीक्षिताः । क्षुल्लिका दीक्षिताः सप्त त्रिंशद्धि ब्रह्मचारिणः॥३६ ___ अर्थ- आचार्य महाराजाने पंद्रह क्षुल्लकोंको दीक्षा दी है, सात क्षुल्लिकाओको दीक्षा दी है और दीक्षा देकर तीस ब्रह्मचारी बनाये हैं। अतिनः पुरुषाः षष्टि त्रिनवति व्रतीः स्त्रियः । दीक्षिता ब्रह्मचारिण्यः पंचविंशति धीमता !!३७ ___ अर्थ---- उन बुद्धिमान आचार्यने साठ पुरुषोंकों अणुव्रत दिये, तिरानवे स्त्रियोंको अणुव्रत दिये और पच्चीस श्राविका ओंको ब्रह्मचारिणी बनाया। पंचमप्रतिमा युक्ता जाताः पंच स्त्रियो वराः । प्रथम प्रतिमा युक्ताः संजाता बहवो नराः॥३८॥ ___ अर्थ- आचार्यने पांच स्त्रियोको पांचवी प्रतिमाएं दीं। तथा पहली प्रथमा बहुतसे स्त्री पुरुषोंको दी। श्राद्धेभ्यः पंचलक्षेभ्यः ददौ यज्ञोपवीतकम् । विशेष व्रतत्रातेन सार्द्ध मूलगुणेन हि ॥३९॥ अर्थ-- आचार्य महाराजने लगभग पांच लाख श्रावकोंको विशेष व्रतोंके समूहके साथ तथा मूलगुणोंके साथ यज्ञोपवीत दिया ।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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