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[८] शिरोमणि की सेवा आदिका विवेचन होकर फटनी चातुर्मास तक फा निरूपण है। उत्तर दिक् संधिमे ललितपुर, मथुरा, दिल्ली, जयपुर, व्यावर, उदयपुर चातुर्मासतक की सब घटनावोंका हाल है। तदनंतर ईडर चातुर्मासके वर्णन कर उपसंहार किया गया है। इसप्रकार यह ग्रन्थका सार लिखा है। ग्रन्थका असली रसास्वादन ग्रन्थको आद्यत स्वाध्याय करनेसे विज्ञ पाठकोको भायगा ही।
वर्णन शैली। महर्पिने इस ग्रन्थके निर्माण करनेमे इतने सरल शद्रोंकी योजना की है कि प्रवेशिकामे पढनेवाले छात्र भी उसे अच्छीतरह समझसकेंगे। ग्रंथके सरल होनेमे उसका उपयोग व प्रचार भी अधिक रूपसे होता है। इसमें कोई संदेह नही कि समाजके सर्व श्रेणीके सज्जन जिनके हृदयमे गुरुवोंके प्रति आस्था है, इसका स्वाध्याय कर पुण्य संचय करेंगे, हमारे ख्यालये सरल रचनामें ग्रन्थकर्ताने यही उद्देश्य रखा होगा। इतनी मृदुरचना होनेपर भी हिंदी अनुवाद दिया गया है यह सोनेमें सुगंध होगया है।
वैशिष्टय. इम ग्रन्थविषयक आराध्य चतुर्विशति जिनमुनियोंके अधि__ पति है। आचार्य शांतिसागर महाराज भी मुनियोके अधिपति
है। ग्रन्थकर्ता स्वयं तपोवन मुनिराज है। ग्रन्थकर्ताक विगागुरु श्री मुनिगज मुधर्मसागरजी महाराज है। अनुवादक धर्मरत्न प लालारामजी शास्त्री मुनिभ्राता है। यह मब मगल परिकर मचमुचमें अभूतपूर्व है । म तो मुनि नही हु । मुनिचरण नबक जरूर
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