________________
[ ९ ]
हूं, इसलिये अधिकार न होते हुए भी इतनी सेवा करनेका अवसर मिला यह महाभाग्य है ।
अनुवादक.
इन दोनों ग्रन्थोंका अनुवाद धर्मरत्न पं. लालारामजी शास्त्रीने किया है । साहित्य संसार में आपका परिचय देनेकी आवश्यकता नही है । आपने अनेक ग्रन्थोंका अनुवाद व निर्माण किया है। साहित्यक्षेत्र में आपके द्वारा जो उपकार हुआ है वह सचमुच में चिरस्मरणीय है । जैन समाज आपका चिरकृतज्ञ रहेगा । हमें पंडितजीका इस प्रसंग में अभिनंदन करते हुए परम हर्ष होता है ।
प्रकाशक.
इस ग्रन्थकी एक हजार प्रति श्रीमान धर्मनिष्ठ सेठ शाहा चंदुलाल ज्योतीचंद सराफ बारामती व एक हजार प्रति श्रीमान धर्मनिष्ठ रावजीभाई केवलचंद ईडर वालोनें प्रकाशित किया है । दोनों महोदय धर्मश्रद्धानी व गुरुभक्त हैं । आचार्य संघके प्रति आप दोनोंकी असीम भक्ति है, उसीके चिन्ह रूपमें इसे प्रकाशित किया है । आप महानुभावोंकी पात्र सेवा व अनवच्छिन्नवैय्यावृत्य अनुकरणीय है । इसके उपलक्ष्य में हम दोनों महानुभावोंके हृदयसे अभिनंदन करते हैं एवं उन्हे कोटिशः धन्यवाद देते हैं । आशा है कि गुरुभक्त पाठक इस ग्रन्थका स्वाध्यायकर यथेष्ट पुण्य संचय करेंगे |
सोलापूर, भाद्रपद शु. ७ वी. सं. २४६२
६२}
गुरुचरणसरोजचचरीफ, वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री.