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________________ 57 आत्तप्रमाणानि सर्वाननशिरोग्रीवं (आ) श्व. 3-11 सर्वे वेदा यत्रैकं (स) स संज्ञां याति भगवान् (स) सहकारिभिरारम्भे न स्वातन्त्रयं (स) त. वा. सहस्रशीर्ष देवं (स) म. ना. 11-1 महो.3 9 सहस्रशीर्षा पुरुषः (स) श्वे. 3-14 पु. सू. 1 सहस्रस्थूणे विमिते (स) शाट्यायनीयं सात्विकेष्वथ कल्पेषु (आ) सायुज्यं प्रतिपन्ना ये (स) भगवदुक्तिः सुजैकतानं जनयेत् 'स) सुपां सुलुक् (आ) पा. सू. 7-1-39 सुषुप्तयुत्कान्त्योर्भेदेन (स) ब्र. सू. 1-4-44 सुहृन्मित्रायुदासीन (स) गी. 6-9 सूयते पुरुषार्थ च (स) मन्त्रिकोपनिषत् सूर्याय जुष्टं निर्वपामि (आ) सृष्टिस्थित्यन्तकरणी (स) पु. सं. पक्कि सं. 40 ___11 25 65 14 11 .... 46 10 .... 506 46 10 273 66 20 .... 6 8 . .... 9 8 .... 274 15 .... 1706 ... 2467 ... 3 2985 558 558800620 or w N OF 856060 60 सैषाऽऽनन्दस्य मीमारांसा (स) तै. 2-8-1 .... 25 14 सोऽकामयत (स) तै. 2-6-1 2 10 ____13. 9. ... 849 .... 118 15 3248 .... 3 20 (आ) ___ .... 123 22 .... 324 17 सोऽध्वनः पारमामोति (स) क. 1-3-9 .. 57 13 सोऽभिध्याय शरीरात्स्वात् (स) म. स्मृ. 1-8 ... सोमः पवते जनिता मतीनां जनितेन्द्रस्य (आ) .... 4
SR No.010565
Book TitleTattvarthamuktakalap and Sarvarthasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVedantacharya
PublisherSrinivasgopalacharya
Publication Year1956
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size42 MB
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