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________________ उपात्तप्रमाणानि पु सं. पङ्क्ति सं. विप्रतिपत्तौ हविषा नियम्येत (आ) पू. मी. सू. 297 18 8-1-32. विरोधे त्वनपेक्षं स्यात् (आ) पू. मी. सू. 1-3-3 ... 21 20 123 18 विश्वकर्मणस्समवर्तताधि (आ) तै. आ 1920 विश्वमायानिवृत्तिः (आ) श्वे. 1-10 177 19 , (स) 184 12 विश्वशंभुवं (स) ना. 11-3 384 विषयित्वनिदानं च तज्ज्ञानं चापि (आ) 320 17 विष्णुमायामहावर्त (स) 177 12 विष्णुरेव परं ब्रह्म त्रिभेदं (स) .... 658 विष्णुरेव भूत्वा (स) .... 1722 विष्णुर्वा अकामयत (आ) .... 53 17 विष्णोविचित्राः प्रभवन्ति मायाः (स) 177 13 विष्णोस्सकाशादुद्भुतं (स) वि.पु 1-1-31 .. , (आ) ... 60 13 विष्णोरन्ये राध्यमानाः (स) शिल्पे गार्ग्यसंहिता .... विष्ण्वाख्यं परमं पदं (आ) ... 5720 वृद्धिहासभाक्तमन्तर्भावात् (आ) ब्र. सू 3-2-20 वेदाच्छास्त्रं परं (आ) .... 60 20 वेदानध्यापयामास (स) .... 56 12 वेदोऽनृतो बुद्धकृतागमोऽनृतः (स) या. प्र. सं.... वेदो यमाश्रयेदर्थ (आ) .... 189 18 वेदैश्च सर्वैरहमेव (स) गी. 15-15 .... 268 वैष्णवं वामनमालभेत (आ) .... 172 11 व्यतिरेकाधिकरणनिवासशब्दैः (स) षडर्थसंक्षेपः । व्याप्तिस्तर्काप्रतिहतिः (आ) श्रीहीन् प्रोक्षति (आ) शंभुराकाशमध्ये (स) 214 (आ)
SR No.010565
Book TitleTattvarthamuktakalap and Sarvarthasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVedantacharya
PublisherSrinivasgopalacharya
Publication Year1956
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size42 MB
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