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________________ .... आतप्रमाणानि यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन् (आ) यो मे हस्तादिवर्म (आ) त. मु. 2-1 यो वेद निहितं गुहायां (स) तै. 2-1-1 (आ) " पु. सं. पङ्क्ति सं. 274 19 250 13 25 10 राजसेषु तु कल्पेषु (आ) 66 लक्षणहेत्वोः (स) पा. सू. 3-2-128 ली श्लेषणे (आ) धा. पा. दिवादि 1139 ... लोकं वैकुण्ठनामानं (स) द्वितीयजितन्ता 18-21 238 238 179 2769 26 187 घचसां वाच्यमुत्तमं (स) स. ना. घषद्कर्तुः प्रथमभक्षः (आ) .... 275 23 वस्तुस्फोटस्स एकस्मिन् (आ) ___ .... 254 17 वाक्यासंख्याविशेषाश्च (स) 73 .... 111 18 वाचारम्भणं विकारो नामधयं (स) छा. 6-1-4 .... (आ) छा. 6-1-4 .... विकारजननी मायां (स) आथर्वणिकी (मन्त्रिकोप निषत्). विग्रहे च व्यूहविभवादयः (आ) न्या. सि. विज्ञानसारथिर्यस्तु (स) क. उ. 3-9 .... 57 12 विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेद (स) ईश 11 विद्याचोरो गुरुद्रोही (स) ... 1139 विद्याबलं दैवबलं (आ) ..... 61 21 विद्याविनयसंपन्ने (स) गी. 5-18 246 , (आ) , 21620 विधिस्तु धारणेऽपूर्वत्वात् (आ) पू.मी. सू. 3-4-15 273 290 179
SR No.010565
Book TitleTattvarthamuktakalap and Sarvarthasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVedantacharya
PublisherSrinivasgopalacharya
Publication Year1956
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size42 MB
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