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उपात्तप्रमाणानि
यदा तमस्तत् (स) श्वे. 4-18
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यदात्मको भगवान् (स)
यदा यदा हि धर्मस्य (आ) गी. 4-7 यद्युगाताsपच्छिद्येत (आ) यद्वाचाऽनभ्युदितम् (स) के. 4 यद्वृत्तयोगः प्राथम्यं ( स ) न दुःखेन (आ)
(आ)
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यश्चाधनः कामयते (स) यस्तर्केणानुसंध (स) यस्मात्परं (स) श्वे. 3-9 म. ना. 10-4
(आ) श्वे. 3-9 म. ना. 10-4
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यस्मिन् कल्पे तु यत्प्रोक्तं (आ) यस्य देवे परा भक्तिः (स) श्वे 6-23 यस्य पर्णमयी जुहुर्भवति (आ) तै. सं. 3-5-7 यस्य पृथवी शरीरं (आ) बृ. 3-7-3 सु.7 यस्य मृत्युश्शरीरं (आ) सु. 7 यस्यात्मा शरीरं (आ) बृ. 5-7-22 मा. शाखा. यस्याव्यक्तं शरीरं (आ) सु. 7 यस्सर्वज्ञस्सर्ववित् (स) मु. 1-1-9, 2-2-7
(आ) मु. 1-1-9, 2-2-7
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यानि नामानि गौणानि (आ)
युक्ता ह्यस्य हरयश्शता दश (स) बृ. 2-5-19 येनाक्षरं पुरुषं वेद (स) मु. 1-2-18 येऽप्यन्यदेवताभक्ताः ( आ ) गी. 9-53
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