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________________ उपात्तप्रमाणानि पु. सं. पङ्क्ति सं. यः पृथिव्यां तिष्ठन् (आ) बृ. 3-7-3 .... 36 12 य एतद्विदुरमृतास्ते भवन्ति (स) तै. ना. 1-3 .... 46 य एषु सुप्तेषु जागर्ति (स) क. 2-5-8 .... 169 14 यजेत्पुरुषसूक्तेन (आ) ... 48 21 यतोऽतो ब्रह्मणस्तास्तु (स) . 9 यतो वा (आ) तै 3-1-1 __72 128 18 यतो वाचो निवर्तन्ते (स) तै. 2-2-1, 2-4-1 1127 ब्रह्म 3. ____239 25 12 .... 269 (आ) तै. 2-4-1, 2-9-1, 32 15 ब्रह्म 3. यत्प्रनृत्यदिवाभाति (स) ... 1228 यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति (स) तै. उ. 3-1-1 .... यत्र त्वस्य सर्वमात्मैवाभूत् (स) बृ. 2-4-14 .... 245 यथाक्रमेणैव विमानमेषां (आ) शिल्पशास्त्रे मरीचि- 61 संहितायां. यथा पृथिव्यामोषधयस्संभवल्ति (स) आथर्वणिकी 4 4, 7 • मु. 1-1-7. यथा शुद्धमुदकं शुद्ध उदके (आ) क. 1-4-15 ... यथा सतः पुरुषात् (स) मु. 1-7 , (आ) मु. 1-7 ..... 5 13 यथा सर्वगतो विष्णुः (आ) वि.पु 1-8-17 यथैकस्मिन् मृण्मये पिण्डे (आ) ... 122 13 यथोर्णनाभिस्सृजते च (स) मु. 1-1-7 यदन्यद्वायोरन्तरिक्षाश्च (आ) बु. 2-3-2 .... 144 21 यदाग्नेयोऽष्टाकपालः (आ) .... 273 19 25
SR No.010565
Book TitleTattvarthamuktakalap and Sarvarthasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVedantacharya
PublisherSrinivasgopalacharya
Publication Year1956
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size42 MB
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