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________________ उपात्तप्रमाणानि प्रमायाः परतन्त्रत्वात् (स) कुसुमाञ्जलिः 2-1 प्रयोजनमनुद्धिश्य (स) प्रशान्तं साक्षसूत्रकम् (स) प्राज्ञेनात्मना संपरिष्वक्तः स) बृ. 4-3-21 प्राज्ञेनात्मनाऽन्वारूढः (स) बृ. 4-3-35 प्राप्य योगबलं कुर्यात् (स) प्रीत्या प्रसूतव्यापारः क्रीडेत्याहुर्मनीषिणः (आ) 49 ,, य 39 (स) मु. 3-2-9 " ब्रह्मैवेदं सर्वं (स) नृ. उ. ता. 7, बृ. 2-5-1 ब्राह्मणार्थी यथा नास्ति (आ) महाभाष्यं भगवानिति शब्दोऽयं (स) भगवद्धर्ममात्रेण (आ) भजध्वं भवतापघ्नं (आ) स्कान्दं भवन्ति तपतां श्रेष्ठ (स) वि. भारतः पञ्चमो वेदः (आ) SARVARTHA VOL. IV. पु. भ 4201 1-3-3 **** raag बहुव्रीहौ (आ) पा. सू. 5-4-73 atarsaat बुद्धिले ( स ) या. प्र. सं. ब्रह्मण आनन्दः (स) तै. उ. 2-8-1 ब्रह्मणस्तास्तु (आ) ब्रह्मविदाप्नोति परं (स) तै. उ 2-1-1 (आ) तै. उ. ब्रह्मविष्णुरुद्रेन्द्रास्ते सर्वे (स) अथर्वशिखा. उ. ब्रह्मदाशा ब्रह्मदासाः (स) आधर्वणी संहितोपनिषत् 127 2-1-1 29 170 54 244 ब्रह्म वनं ब्रह्म स वृक्षः (स) ब्रह्मविद्यामधिष्ठाय (स) ब्रह्म वेद ब्रह्मैव (आ) मु. 3-2-9 180 26 171 171 245 31 .... 3000 2004 287 .... 268 112 www. .... www. 1000 4508 G .... पु. सं. पङ्क्ति सं. 71 2 8 11 2004 291 170 170 134 12 ... 10 25 .... 56 320 59 2 288 D 4 5 8 00 8 9 14 12 8 15 19 4 15 12 3 4 14 7 76 12 14 22
SR No.010565
Book TitleTattvarthamuktakalap and Sarvarthasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVedantacharya
PublisherSrinivasgopalacharya
Publication Year1956
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size42 MB
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