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________________ उपात्तप्रमाणानि पु. सं. पति सं. 16 गोपिकामध्यगं वेणुं (आ) .... 291 गौणं लाक्षणिकं वाऽपि (आ) त. वा. गौणश्चेन्नात्मशब्दात् (आ) ब्र. सू . 1-1-6 गौरनाद्यन्तवती सा जनित्री (स) आथर्वणिकी चूलिकोपनिषत् 5 (मन्त्रिकोपनिषत्). 143 178 ग्रावाणः प्लवन्ते (आ) 244 घटध्वंसे घटाकाशः (स) 137 11 चक्रं शंख तथा खड्गं (स) छागस्य वपाया मेदसः (आ) छागो वा मन्त्रवर्णात् (आ) 36 171 .... 115 19 54 ... 293 जनिकर्तुः (आ) पा. सू 1-4-30 जनितेन्द्रस्य जनितोत विष्णोः (स) जन्म कर्म च मे दिव्यं (आ) गी 4-9 जीवभूतस्सनातनः (आ) गी. 15-7 जीवव्यष्टिवदीश्वरव्यष्टयोऽपि (स) जुष्टं यदा पश्यत्यन्यमीशं (स) श्वे. 4-7 ज्ञानात्मकः (स) ज्वरातों जलशायिन (आ) 12 .... 129 .... 169 .... 282 .... 293 15 तं षड्विवशकमित्याहुः (स) मन्त्रिकोपनिषत् त इमे सत्याः कामाः (स) छा. 8-3-1 त एते बहुपाप्मानः (स) 180 .... 113 10
SR No.010565
Book TitleTattvarthamuktakalap and Sarvarthasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVedantacharya
PublisherSrinivasgopalacharya
Publication Year1956
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size42 MB
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