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सर्वार्थ
पान
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तिनिके प्रमाणते विचारिये तब बहुत विरोध आवै है । जाते वेदका उच्चार तौ ज्ञानपूर्वकही है । बहुरि कहै, जो, शब्दकी । व्यक्ति ज्ञानपूर्वक है शब्द तौ नित्यही है। तहां कहिये जो शब्दकी व्यक्ति शब्दतै भिन्न तौ नाही शब्दरूपही है ॥ बहुरि कहै हैं, जो, वचनके उच्चारकै ज्ञानपूर्वकपणां है । वचन तौ नवीन नाही नित्यही है । जाते याका कर्ता कह्या नाही । बडे बडे ज्ञानी भये याका कर्ता तौ काहूकू भी यादि न भया । ताकू कहिये वेदका कर्ता वैशेपिकमतके तौ ब्रह्माके
वचसिद्धि
कहै है । जैमिनी कालासुरकू कहै हैं । बौद्धमती स्वाष्टकातकू कहै हैं । अपनी अपनी संप्रदायमैं सर्वही कर्ता कहै हैं । टीका
ताते ऐसे केसे कहिये ? जो काहूनें कर्ता कह्या नाही । जो कहै बहुतकर्ता बताये ताते यह जानिये कि कर्ता कहना म. श असत्यही है । ताकू कहिये बहुत कर्ता भये अकर्ता कैसै कहिये । बहुरि अन्य आगमतें ऐसा महानपणा भी वेदकै
नाही । जाते कहिये, जो, ऐसा काहूत किया जाता नाही तातें अकर्ता कहिये॥
बहुरि कहै, जो, वेदका पढणां वेदका पढनैंपूर्वकही है । जो पहले कोई पढ्या होय तातै पढिये है सो यह कहना भी अन्यतें समान है । अपने अपने आगमकू सर्वही अपने अपने आप्तकू पढावनेवाला कहै है । बहुरि कहै आगमके 2 अर्थकं साक्षात् प्रत्यक्षकरि वक्ता होय है । तो ऐसेही कर्ता कहिये तो कहा विरोध है ? बहुरि पढावनेवाले विना वेदका
पढनां कैसे होय ? जो कहै ब्रह्मा स्वर्गवि आप अध्ययन करै है पीछे मनुष्यलोकमैं आय औरनिकू पढावै है, तो ऐसे
तौ सर्वही शास्त्रके पढने पढावनेवाले कहिये । जो ऐसैही अकृत्रिमता ठहरै तौ सर्वही शास्त्र अकृत्रिम ठहरै । बहुरि | कहै जो मैं पूर्व शास्त्र पढे थे तेही अबहूं पढाऊं हूं । ऐसा अनुभव तौ काहूकै दीखै नाही । तहां कहिये तत्काल हुवा बालक बच्चा माताका दूध खीचै है लो अनुभवविना कैसै खीचै है ? जो वाकै अनुभव है तो खीचें है, तैसैही शास्त्रका संस्कार पढने पढावनेवालेकै होय तौ कहा विरोध ? बहार जो अक्षर पद वाक्यनिविर्षे व्युत्पत्ति काव्य रचनेवाले कवीश्वरनिकै देखिये है तैसेंही वेदकी रचनाका कर्ता कहिये तो यामैं कहा विरोध है ? तथा ऐसे भी सुणिये है सामगण तौ सामवेद किया बहुरि रुचिगिरा. रिचा करी । ताते वेदकै अपौरुपेयपणां कहा रह्या ? तातै भारतादिककी ज्यों वेद भी पदवाक्यस्वरूप है सो पौरुषेयपणाही संभव है ॥
बहुरि वेदकै अकृत्रिमपणां प्रमाणताका कारण मानिये तो ऐसैही सर्वपदार्थनिकै अकृत्रिमपणां प्रमाणताका कारण क्यों न कहिये । बहुरि निर्दोष कारणते उपजनां । बहुरि अपूर्वार्थपणां बाधारहितपणां प्रमाणताका कारण है । सो अनुमानादि । प्रमाणविर्षे समान है । तातें निष्प्रयोजन वेदकै अपौरुषेयपणां काहे• कल्पिये । तातें आगमकै प्रमाणता भी स्याद्वादमतमैं असंभव बाधकप्रमाणते साधी है सोही सत्यार्थ है । बहुरि कोई कहै जो शब्दपूर्वकही ज्ञान है ऐसा एकांत है । जाते